December 6, 2024

सांप्रदायिक नफरत के लिए फिर सुर्खियों में आया उत्तराखंड, रुद्रप्रयाग जिले के कुछ जगहों पर लगा चेतावनी बोर्ड, लिखा था ‘ग़ैर हिन्दू/रोहिंग्या मुसलमानों व फेरी वालों का गाँव में व्यापार करना/घूमना वर्जित है’

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सांप्रदायिक नफरत के लिए फिर सुर्खियों में आया उत्तराखंड, रुद्रप्रयाग जिले के कुछ जगहों पर लगा चेतावनी बोर्ड, लिखा था ‘ग़ैर हिन्दू/रोहिंग्या मुसलमानों व फेरी वालों का गाँव में व्यापार करना/घूमना वर्जित है’


उत्तराखंड ग़ैर हिन्दू/रोहिंग्या मुसलमानों व फेरी वालों का गाँव में व्यापार करना/घूमना वर्जित है।’ पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग ज़िले में कुछ ऐसे बोर्ड लगाए गए हैं जिन पर रोहिंग्या मुसलमानों और ग़ैर हिन्दुओं के गांव में प्रतिबंध की बात लिखी है। सार्वजनिक जगहों पर लगाए गए इन बोर्ड पर इस बात को एक ‘चेतावनी’ के रूप में लिखा गया है।इस मामले पर मुस्लिम प्रतिनिधिमंडलों ने उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) अभिनव कुमार से मुलाक़ात की और मामले के बारे में जानकारी दी है। स्थानीय पुलिस का कहना है कि उसे जहां ऐसे बोर्ड का पता चला है उसे हटा दिया गया है और इसमें शामिल लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करेंगे। गौरतलब हो कि उत्तराखंड में पिछले कुछ सालों में कई जगहों पर सांप्रदायिक तनाव देखने को मिला है अब मुसलमानों को निशाना बनाने का नया मामला सामने आया है। रुद्रप्रयाग जिले के कई गांवों के बाहर साइनबोर्ड लगाकर मुस्लिमों के प्रवेश को वर्जित किया जा रहा है। प्रथमदृष्टया यह मामला स्थानीय लग रहा था, लेकिन विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने अपना समर्थन देकर इसे विस्तार और अभियान का स्वरूप दे दिया है। वीएचपी का कहना है कि उत्तराखंड में आए दिन मुसलमानों द्वारा हिंदू बहन–बेटियों के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं हो रही हैं, जिससे आक्रोशित होकर हिंदू समाज इस तरह के कदम उठा रहा है।
यह मामला ऐसे समय में सामने आया है जब हाल ही में रुद्रप्रयाग के पड़ोसी ज़िले चमोली में नाबालिग़ से कथित छेड़छाड़ के मामले में सांप्रदायिक तनाव फैल गया था। जिन गांवों में इस तरह के बोर्ड लगे हैं उनमें से एक गांव है न्यालसू। प्रमोद सिंह इस गांव के ग्राम प्रधान हैं। बीबीसी ने प्रमोद सिंह के हवाले से लिखा है कि उनका कहना है कि ‘मेरे गाँव में जो बोर्ड पर लिखा गया था उसमें बदलाव किया गया है। पहले बोर्ड में ग़ैर हिंदू व रोहिंग्या मुसलमान लिखा गया था उसकी जगह पर अब फेरी वालों का प्रवेश वर्जित लिखा गया है।’
उन्होंने आगे कहा कि ‘असल में गाँव में अधिकतर फेरी वाले यहाँ ऐसे आते हैं जिनका कोई वेरिफ़िकेशन नहीं है। आने वाले समय में कोई घटना न हो इसलिए इस तरह का लिखवाया गया। बोर्ड पर ग़ैर-हिन्दू और रोहिंग्या मुसलमान जैसे शब्दों का इस्तेमाल पूर्ण रूप से ग़लत है।’ वही संघ से जुड़े अशोक सेमवाल जो रुद्रप्रयाग में रहते हैं उन्होंने कहा है कि इन बोर्ड्स को जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से लगाया गया है।अशोक कहते हैं, ‘यह बोर्ड गाँव के प्रधानों व कुछ संगठनों के द्वारा जागरूकता फैलाने के लिये लगाए गए हैं। ऐसे बोर्ड कई गाँवों में लगाये गए हैं। अब केदारघाटी से यह मुहिम छिड़ी तो सभी एक दूसरे को देखकर बोर्ड लगा रहे हैं। हमने यह बोर्ड लगाने वालों को पहले ही कहा था कि यह लिखा जाना सही नहीं है। हालांकि वो लोग किस संगठन से जुड़े हैं, यह मैं नहीं जनता हूँ। ‘पुलिस और कुछ लोगों की तरफ़ से बोर्ड में संशोधन के लिए कहा गया है। पुलिस की तरफ़ से कहा गया है कि बोर्ड पर किसी समुदाय विशेष के बारे में न लिखकर ‘बाहरी’ लिखा जाए। अब जैसे मेरे गाँव में बोर्ड लगा है तो हम उसमें संशोधन कर देंगे।’
खबर जगत ने वीएचपी के प्रांत संगठन मंत्री (उत्तराखंड) अजय ने से बातचीत के आधार पर लिखा है कि उनका आरोप है कि मुसलमान उत्तराखंड की हिंदू महिलाओं को फंसाकर ले भागते है। उनका संगठन हिंदुओं को जगाने का काम कर रहा है, ‘हमारा काम समाज का जागरण करना है। समाज जाग रहा है। अब हिंदू महिलायें मोमबत्ती नहीं, दराती लेकर चलेंगी।’ वही रुद्रप्रयाग के सर्किल अधिकारी प्रबोध कुमार घिल्डियाल ने पुष्टि की कि ऐसे कुछ साइनबोर्ड लगाए गए थे, लेकिन उन्हें हटा दिया गया है। राज्य पुलिस मामले की जांच कर रही है।
क्षेत्राधिकारी ने कहा है कि ‘जो भी व्यक्ति इसमें लिप्त पाया जाएगा, उसके ख़िलाफ़ चालानी कार्रवाई भी करेंगे। अगर कहीं और ऐसे बोर्ड बचे होंगे तो संज्ञान में आते ही उन्हें भी हटाएंगे,’ इस सिलसिले में मुस्लिम सेवा संगठन के प्रतिनिधिमंडल ने 5 सितंबर को उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) अभिनव कुमार से मुलाकात की और राज्य में बढ़ती अल्पसंख्यक विरोधी घटनाओं पर चिंता व्यक्त की।रुद्रप्रयाग के न्यालसू गांव के बाहर लगे जिस साइन बोर्ड की तस्वीर वायरल हुई है, उस पर लिखा है, ‘गैर–हिंदुओं/रोहिंग्या मुसलमानों और फेरीवालों के लिए गांव में व्यापार करना/घूमना वर्जित है। अगर (वे) गांव में कहीं भी पाए गए तो दंडात्मक एवं क़ानूनी कार्रवाई की जाएगी।’ साइनबोर्ड पर दावा किया गया है कि यह निर्देश न्यालसू ग्राम सभा का है।
लेकिन खबर जगत के अनुसार न्यालसू के प्रधान प्रमोद सिंह ने कहा कि साइनबोर्ड ग्राम सभा ने नहीं लगाया है, ग्रामीणों ने लगाया है। खबर जगत को अन्य गांवों में लगे ऐसे साइनबोर्ड की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा,, शेरसी, गौरीकुंड, त्रियुगीनारायण, सोनप्रयाग, बारसू, जामू, अरिया, रविग्राम और मैखंडा समेत क्षेत्र के लगभग सभी गांवों में इसी तरह के बोर्ड लगे हैं। ये बोर्ड पुलिस सत्यापन के बिना फेरीवालों को गांवों में प्रवेश करने से रोकने के लिए लगाए गए हैं।’उन्होंने कहा कि उनके गांव के ज़्यादातर पुरुष यात्राओं के सिलसिले में बाहर रहते हैं। ‘महिलाएं घर में अकेली रहती हैं। जिन (फेरीवालों) का पुलिस सत्यापन हुआ है वे नियमित रूप से गांव में आते हैं, उन्हें रोका नहीं जाता। लेकिन कई फेरीवाले बिना वैध पहचान पत्र और पुलिस सत्यापन के गांव में आते हैं। अगर फेरीवाले कोई अपराध करते हैं और भाग जाते हैं, तो उनका पता नहीं लगाया जा सकता है।’फेरीवालों के पुलिस सत्यापन पर रुद्रप्रयाग के सर्किल अधिकारी ने कहा, ‘ये तो संविधान के तहत मिला हुआ अधिकार है कि आप कहीं भी वैध रूप से व्यापार कर सकते हैं। कभी भी भ्रमण कर सकते हैं। कहीं भी जाकर बस सकते हैं। ये अधिकार भारत के प्रत्येक नागरिक को मिला हुआ है। वैसे भी पहाड़ के सभी लोग बाज़ार तो नहीं जा सकते, इसलिए फेरी की तो प्रथा है।’

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