क्या न्यूज़ पोर्टल पूरी तरह से लीगल है?
क्या न्यूज़ पोर्टल पूरी तरह से लीगल है?:
हम आज डिजिटल युग में जी रहे है। आज के डिजिटल युग में हर क्षेत्र में क्रांति आयी है जिसमे पत्रकारिता(Journalism) भी पीछे नहीं रही है। पत्रकारों को अपने विचारों व अभिव्यक्ति को व्यक्त करने के लिए एक नया डिजिटल मंच मिला जिसे आज हम “न्यूज़ पोर्टल” के नाम से जानते है। न्यूज़ पोर्टल(News Portal) आज के डिजिटल युग मे पत्रकारों के लिए शरीर के रीढ़ के समान आवश्यक हो चुका है। न्यूज़ पोर्टल के बगैर कोई भी पत्रकार(Journalist) वर्तमान के डिजिटल युग मे खुद को अधूरा महसूस करने लग गया है।
क्या न्यूज़ पोर्टल पूरी तरह से लीगल है?
क्या न्यूज़ पोर्टल पूरी तरह से लीगल है?
अफवाहें: न्यूज़ पोर्टल यूजर पत्रकार नही है
न्यूज़ पोर्टल की जानकारी को यदि शुरुआत के साथ प्रारम्भ करे तो हम यह बता दे कि दुनिया भर में न्यूज़ पोर्टल की शुरुआत बड़ी तेजी से हुई जिसमे न्यूज़ पोर्टल्स(News Portal) की बढ़ती हुई लोकप्रियता को देखते हुए कई पुराने अख़बार व टीवी चैनलों ने भी अपना-अपना वेब पोर्टल शुरू किया।
क्या न्यूज़ पोर्टल पूरी तरह से लीगल है?
क्या न्यूज़ पोर्टल पूरी तरह से लीगल है?
लेकिन जहाँ एक तरफ न्यूज़ पोर्टल से पत्रकारिता में एक नयी क्रांति आ रही है वहीँ दूसरी ओर कई बार ये अफवाहें फैलती रहती है कि न्यूज़ पोर्टल फ़र्ज़ी है और न्यूज़ पोर्टल पर काम करने वाले संवाददाताओं अथवा कार्यकर्ताओं को सरकार पत्रकार नहीं मानती है व पत्रकारिता के दायरे से बाहर रखकर उन पर वैधानिक कार्यवाही कर सकती है।
अनभिज्ञता ही अफवाहें पैदा करती है
न्यूज़ पोर्टल के फर्जी होने सम्बंधित तरह तरह कि भ्रामक और झूठी खबरे आये दिन सोशल मीडिया(Social Media) में देखने को मिल जाती है, इतना ही नहीं कई सरकारी अधिकारी भी इन ख़बरों पर सही कि मुहर लगा बैठते है परन्तु असल मे सच्चाई क्या है यह बात सभी को तर्कपूर्ण तरीके से समझाने की आवश्यकता है; क्योंकि अनभिज्ञता ही न्यूज़ पोर्टल से सम्बंधित इस प्रकार की अफवाहों को अंजाम देती है।
जो लोग या अधिकारीगण ये मानते और कहते हैं कि न्यूज़ पोर्टल फ़र्ज़ी है और इनमे कार्यरत पत्रकारों को सरकार पत्रकार नहीं मानती है, असल में इन लोगों/ अधिकारियों को न ही पत्रकारिता के विषय में कोई ज्ञान है और न ही पत्रकारिता के संघर्ष की उन्हें किसी भी तरह की जानकारी है।
किसी साजिश के तहत पत्रकारिता का इतिहास दबाया जा रहा
ये पहली बार नहीं है जब किसी ऐसे मंच को मौन रखने कि साजिश रची जा रही है जिसका सम्बन्ध पत्रकारिता से हो, न्यूज़ पोर्टल्स फर्जी है या नहीं ये जानने से पहले एक नजर डालते है भारत में पत्रकारिता के इतिहास(History Of Journalism) पर।
पत्रकारिता का इतिहास
क्या न्यूज़ पोर्टल पूरी तरह से लीगल है?
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असल मे भारत में पत्रकारिता का इतिहास बहुत ही उपेक्षा पूर्ण रहा है, अगर हम इतिहास को देखें तो यह पाएंगे कि अंग्रेजी शासकों द्वारा पत्रकारों को दबाने का बहुत प्रयास किया गया है जिसको हम आगे अच्छे से समझ सकते है।
अंग्रेजी हुक्मरानो ने पत्रकारों कि आवाज दबाने के लिए भारतीय प्रेस पर तरह तरह के एक्ट पारित किये, अंग्रेजों को सबसे ज्यादा तकलीफ भारतीय भाषा अर्थात हिंदी में प्रकाशित समाचार पत्रों से होती थी।
अंग्रेजी शासन काल में प्रेस पर क़ानूनी नियंत्रण की शुरुआत सबसे पहले तब हुई जब लॉर्ड वेलेजली ने प्रेस नियंत्रण अधिनियम द्वारा सभी समाचार- पत्रों पर नियंत्रण (सेंसर) लगा दिया था, इसे प्रेस नियंत्रण अधिनियम,1799 के नाम से जाना जाता है।
हिंदुस्तानी पत्रकारिता(Indian Journalism) पर पूर्ण प्रतिबंध गवर्नर जरनल जॉन एडम्स ने सन् 1823 लगाया था। इस नियम के अनुसार मालिक तथा प्रकाशक को अखबार एजेंसी की स्थापना करने के लिए लाइसेंस लेना पड़ता था; उसकि वजह से राजा राम मोहन रॉय को अपनी पत्रिका ‘मिरात-उल-अख़बार’ का प्रकाशन बंद करना पड़ा था।
पत्रकारिता को मौन करने वाला अधिनियम; वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट-1878
क्या न्यूज़ पोर्टल पूरी तरह से लीगल है?
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लॉर्ड लिटन ने वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट लागू किया था। पत्रकारिता की आवाज को मौन कर देने वाले इस तानाशाही एक्ट के प्रमुख प्रावधान थे;
प्रत्येक प्रेस को यह लिखित वचन देना होगा कि वह (अंग्रेजी) सरकार के विरुद्ध कोई लेख नहीं छापेगा।
प्रत्येक मुद्रक तथा प्रकाशक के लिए जमानत राशि जमा करना आवश्यक होगा।
इस संबंध में जिला मजिस्ट्रेट का निर्णय अंतिम होगा तथा उसके खिलाफ अपील नहीं की जा सकेगी।
ये कुछ ऐसे एक्ट थे जिनका मुख्य उद्देश्य भारतीय प्रेस को पूर्ण रूप से मौन करना था ताकि वह विदेशी हुकूमत के जुल्म को जगजाहिर न कर सके।
आजादी के बाद भारतीय प्रेस परिषद की स्थापना
क्या न्यूज़ पोर्टल पूरी तरह से लीगल है?
क्या न्यूज़ पोर्टल पूरी तरह से लीगल है?
आजादी के बाद सन 1966 में भारतीय प्रेस परिषद् कि स्थापना हुई, जिसका उद्देश्य भारत में प्रेस के मानकों को बनाए रखने और सुधार की स्वतंत्रता का संरक्षण देना था।
एमरजेंसी के दौरान पत्रकारिता का दमन
भारत में एमर्जेन्सी के दौरान एक बार फिर से पत्रकारिता के काले दिन देखने पड़े। सरकारी तानाशाही कि वजह से बहुत से समाचारों पत्रों ने दम तोड़ दिया था। फ़िलहाल किसी तरह से पत्रकारिता ने खुद को संभाला जा चुका है और तमाम सरकारी और कॉरपरेट दबाव के बावजूद भी पत्रकारों ने पत्रकारिता के वजूद को जिन्दा रखा हुआ है।
टीवी का युग
बढ़ते कालक्रम के दौरान टीवी का युग आया और फिर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया(Electronic Media) का जन्म हुआ। शुरुआत में इलेक्ट्रिक मीडिया को भी तरह तरह कि उपेक्षाएँ सहनी पड़ीं थी लेकिन धीरे धीरे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने प्रिंट मीडिया(Print Media) को भी पीछे छोड़ दिया।
न्यूज़ पोर्टल ने पत्रकारिता के गिरते स्तर को बचाया
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के आने से भारत में जहाँ एक ओर नई क्रांति आई वहीँ दूसरी ओर निजी /व्यवसाई कंपनियों के हस्तक्षेप से पत्रकारिता का स्तर भी गिरता गया। इस सम्बन्ध में प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया(Press Counsil Of India) के अध्यक्ष रहे जस्टिस काटजू ने कहा था कि;
भारतीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पत्रकारिता कि गरिमा को भूल बैठा है। उसे जन सरोकार से कोई मतलब नहीं बल्कि वो कॉपोरेट और सरकारी प्रचारक कि तरह काम कर रहा है।
न्यूज़ पोर्टल के युग में गिरती पत्रकारिता का दमन हुआ
बीता समय; वह समय था जब भारतीय पत्रकारिता वाकई बुरे दौर से गुजर रही थी पर इस समय में हम एक नए युग में आ गए है, जिसे आज हम इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी(Information Technology) का युग के नाम से जानते है।
इस डिजिटल युग के आने के कुछ ही वर्षों के बाद न्यूज़ पोर्टल्स कि शुरुआत हुई, न्यूज़ पोर्टल्स ने काफी हद तक पत्रकारिता से सरकारी व कॉर्पोरेट दबाव का कम करने में अपना योगदान दिया है।
न्यूज़ पोर्टल्स की अफवाहें क्यों?
असल मे सरकारी व कॉपोरेट दबाव न होने कि वजह से न्यूज़ पोर्टल के संवादाता व संपादक स्वतंत्र हो कर सरकारी व निजी कंपनियों कि खामियों को लिखते व दिखाते रहते है जिस वजह से न्यूज़ पोर्टल्स इन लोगों को नहीं भाता है, इसी वजह से समय समय पर न्यूज़ पोर्टल के सम्बन्ध में फ़र्ज़ी अफवाहें उन कार्पोरेट्स द्वारा उड़ाई जाती रहती है।
किसे है न्यूज़ पोर्टल से तकलीफ?
क्या न्यूज़ पोर्टल पूरी तरह से लीगल है? इसका जवाब ये है कि डिजिटल युग की शुरुआत के साथ साथ न्यूज पोर्टल्स के आने से सबसे ज्यादा नुकसान दरबारी पत्रकारों, भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों और अवैध व्यापार करने वाले लोगो को हुआ है।
कैसे करते है यह भ्रष्टाचार
न्यूज़ पोर्टल आने से पहले भ्रष्टाचार के रूप में, किसी विभाग कि कमी या फिर किसी अवैध व्यापार कि जानकारी किसी, ‘न लिखने वाले’ पत्रकार को हो जाती थी तो वो खबर लिखने से पहले उस अधिकारी/व्यापारी से बात करके मोटी रकम वसूल लेते थे और खबर गायब कर जाते थे।लेकिन अब न्यूज़ पोर्टल के समय में इन ‘न लिखने वाले’ पत्रकारों व भ्रष्ट अधिकारियों की दाल नहीं गल पा रही है; क्योंकि इन पत्रकारों का अवैध समझौता होने से पहले ही वह खबर न्यूज़ पोर्टल के माध्यम से सोशल मीडिया(Social Media For News Portals) में वायरल हो जाती है और आवाम तक खबरो का प्रकाशन हो जाता है।
सरकार ने कभी नहीं कहा कि न्यूज़ पोर्टल धारक पत्रकार नहीं है।
न्यूज़ पोर्टल धारकों की जानकारी के लिए हम बात दे कि सरकार ने कभी नहीं कहा कि न्यूज़ पोर्टल का संवाददाता पत्रकार नहीं है।
वैसे तो कई बार देखने को मिलता है बहुत से अधिकारीगण भी ये फरमान जारी कर देतें है कि न्यूज़ पोर्टल को सरकार फ़र्ज़ी मानती है, कई संस्थानों में सूचना अधिकारी भी यही राग अलापते मिल जायेंगे लेकिन यदि इनसे मांग कि जाय कि;
“क्या इनके पास सरकार/ मिनिस्ट्री ऑफ़ इनफार्मेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग, प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया या प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो द्वारा जारी किया गया ऐसा कोई भी आदेश है जिसमे ये कहा गया हो कि सरकार न्यूज़ पोर्टल के संवाददाता को पत्रकार नहीं मानती.”
इस मांग पर ये न तो आपको कोई लिखित आदेश दिखा पाएंगे और न ही कोई जानकारी दे पाने ने सक्षम हो पाएंगे क्योंकि असल में ऐसा कोई भी आदेश जारी ही नहीं हुआ है।
क्या न्यूज़ पोर्टल पूरी तरह से लीगल है?
हम आपकी जानकारी के लिए बता दे कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 में दिए गए स्वतंत्रता के मूल अंधिकार को प्रेस की स्वतंत्रता के बराबर माना गया है जिसके तहत किसी भी भारतीय नागरिक को न्यूज़ पोर्टल शुरू और संचालित करने कि स्वतंत्रता है।
न्यूज़ पोर्टल के पत्रकार की प्रामाणिकता के लिए बन रही नियमावली
सरकार द्वारा भी न्यूज़ पोर्टल कि बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए 4 अप्रैल 2018 को सूचना और प्रसारण मंत्रालय की ओर से जारी एक आदेश में कहा गया है कि देश में चलने वाले टीवी चैनल और अखबारों के लिए नियम कानून बने हुए हैं और यदि वह इन कानूनों का उल्लंघन करते हैं तो उससे निपटने के लिए प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) जैसी संस्थाएं भी हैं, लेकिन ऑनलाइन मीडिया के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।
न्यूज़ पोर्टल्स और डिजिटल मीडिया की भावनाओ को ध्यान में रखते हुए यह कहा गया ह कि;
ऑनलाइन मीडिया के लिए नियामक ढांचा बनाने के लिए एक समिति का गठन किया जायेगा।
दस लोगों की इस कमेटी के संयोजक, सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव होंगे।
इस कमेटी में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और एनबीए के सदस्य भी शामिल होंगे।
गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय के सचिव भी इस कमेटी का हिस्सा होंगे।
चूंकि जब दस लोगों कि एक टीम निर्धारित कि गयी है जो न्यूज़ पोर्टल को रेगुलेट(News Portal Registration) करने सम्बन्धी नियम बना रहे तो इस नियम के बनने के पहले ही यदि कोई यह फरमान जारी करे कि न्यूज़ पोर्टल फर्जी है तो या तो वह अल्पज्ञानी है या तो सरकार के आदेश से खुद को ऊपर मानता है। सरकार ने न्यूज़ पोर्टल्स को कभी भी फ़र्ज़ी नहीं माना यही कारण है कि दस सदस्यीय समिति न्यूज़ पोर्टल हेतु नियमावली बना रही है।
तो आज के इस आर्टिकल में हमने जाना कि क्या न्यूज़ पोर्टल पूरी तरह से लीगल है? या ये मात्र अफवाह है। अतः हम हमारे पाठकों को यह आश्वस्त करते है कि न्यूज़ पोर्टल के विषय में किसी भी प्रकार कि अफवाह में न पड़ें, न्यूज़ पोर्टल पूरी तरह वैध है, और इसमें कार्यरत संवाददाता एक प्रमाणित पत्रकार माने जाएंगे।