जैन संत ने भगवान राम की महिमा बताते हुए सभी को धर्म का अनुसरण करने और श्री राम के आदर्शो पर चलने का अव्वाहन किया
जैन संत ने भगवान राम की महिमा बताते हुए सभी को धर्म का अनुसरण करने और श्री राम के आदर्शो पर चलने का अव्वाहन किया
जहां पूरे देश में भगवान राम की अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा को लेकर खुशी है , उत्साह है, जगह-जगह शोभा यात्रा निकाली जा रही है ,मंदिरों को, घरों को,बाजारों को सजाया जा रहा है चारों ओर राम राम के जय कारे लग रहे हैं वही बांदा में इन सब के साथ-साथ जैन संत ने भगवान राम की महिमा बताते हुए सभी को धर्म का अनुसरण करने और श्री राम के आदर्शो पर चलने का अव्वाहन किया
*जैन संत 108 श्री प्रणम्य सागर महाराज जी ने अयोध्या प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर छोटी बाजार झंडा चौराहे पर भगवान श्री राम पर प्रवचन कीये*
वही *जैन समाज ने जीव दया के लिए ,प्राणियों के प्राणों की रक्षा करने के लिए सर्वोदय जीव दया केंद्र स्थापित करने का निर्णय लिया*
प्रवचन में उन्होंने भगवान श्री राम की जीवन चरित्र पर बताया कि *प्रभु श्री राम के आदर्शों को , उनके गुणो को अपनी जीवन में उतारना , उनके बताए हुए मार्ग पर चलना सच्चा धर्म* है *केवल राम नाम बोलने से कल्याण नहीं होगा बल्कि आचरण में राम के गुणों को उतारना ही आत्म कल्यान करता है और मोक्ष मार्ग प्रशस्त करता है।*
मुनि श्री ने कहा कि अयोध्या श्री राम की जन्मभूमि के साथ-साथ पांच जैन तीर्थंकरों की भूमि है जहां पर उन्होंने जन्म लिया ऐसी भूमि पर जाने के लिए पुण्य चाहिए जो साधु के दर्शन, धर्म का श्रवण ,और अपनी भावना की शुद्धि से ही संभव है, तीर्थ तो अचल होते हैं लेकिन साधू तो चलते-फिरते तीर्थ हैं जिनके दर्शन करना चाहिए और धर्म का श्रवण करना चाहिए. भक्ति के द्वारा श्री राम के गुणों का अपने हृदय में समावेश करना चाहिए इन्हीं गुणों के कारण श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते हैं भगवान श्री राम ने *अपने आदर्शों के लिए राजसुख त्याग दिया और बन को चले गए और उनका यही वनवास रावण की मृत्यु का कारण बना* मुनि श्री ने कहा कि जीवन में जो भी घटनाएं घटती हैं वह हमारे अपने कर्मों के द्वारा सुनिश्चित होती हैं *अगर राम वन में नहीं जाते तो ना सीता का हरण होता और ना ही रावण का मरण होता* मुनि श्री 108 प्रणव सागर महाराज जी ने कहा कि राम ने वन में फल फूल दूध वनस्पति आदि का सेवन किया ना कि अंडा मांस मदिरा का।उन्होंने हमेशा नीति से काम किया, ।जो लोग अनीति की भावना रखते हैं , तामसी खाना खाते हैं विकृत भोजन करते हैं उनका मन ही वैसे ही होता है तभी कहते हैं कि जैसा खाएं अन्न वैसा होए मन। उन्होंने कहा कि *सबसे बड़ा पाप हिंसा और सबसे बड़ा धर्म दया और अहिंसा है* हिंदू कोई जाति नहीं बल्कि जो हिंसा से दूर हो वही हिंदू है उन्होंने कहा दुनिया में रामराज आना चाहिए *रामराज का मतलब जहां पर किसी प्राणी को मारा न जाए सभी प्राणी सुखी हो,निर्भय हो* क्योंकि सभी प्राणियों में राम बसे हैं मुनि श्री ने कहा कि अगर जीवन में अंडा , मांस ,शराब यह तीन विकृतिया निकल जाए तो आत्मा में रामत्व के गुण आ जाएंगे।
इस अवसर पर कार्यक्रम का
मंच संचालन dr शिव दत्त त्रिपाठी ने किया पूर्व विधयक युवराज सिंह योगेश जैन विजय ओमर आनंद बाजपाई चमत्कार शर्मा कमल गुप्ता dr जगगन्नाथ पाठक मनोज जैन, पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष विनोद जैन प्रकाश जैन नरेंद्र जैन सनत जैन राकेश जैन आशीष जैन ,विल्लु जैन, सैकड़ो की संख्या में महिलाएं बच्चे पुरुष एवं सभी समुदाय के लोग रहे।
कार्यक्रम का आयोजन विनीत गुप्ता राजे ,विवेक राजे ने किया
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रिपोर्ट दिलीप जैन बीरेंद्र गुप्ता