केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का भाग माने जाने वाले पशुपतिनाथ मंदिर का रहस्य
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का भाग माने जाने वाले पशुपतिनाथ मंदिर का रहस्य
प्रयागराज भारत समेत विश्वभर में हिन्दू देवी-देवताओं से संबंधित कई मंदिर और तीर्थ स्थान मौजूद है। आज हम जिस धार्मिक स्थल की बात कर रहे हैं वह भगवान शिव, जिन्हें उनके भक्त भोलेनाथ, महादेव, रुद्र, आदि नाम से जानते हैं, को समर्पित स्थान है।पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल का पशुपतिनाथ मंदिर ऐसा ही एक स्थान है, जिसके विषय में यह माना जाता है कि आज भी इसमें शिव की मौजूदगी है।केदारनाथ मंदिर पशुपतिनाथ मंदिर को शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, केदारनाथ मंदिर का आधा भाग माना जाता है। पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल की राजधानी काठमांडू से किलोमीटर उत्तर-पश्चिम देवपाटन गांव में बागमती नदी के तट पर है स्थित है।भगवान शिव यूं तो भगवान शिव की महिमा अद्भुत है, उनसे जुड़ी कहानियां किसी के भी मस्तिष्क में हैरानी के भाव पैदा कर सकती हैं। उनसे जुड़े रहस्य और पौराणिक घटनाएं उनके भक्तों को आज भी उनसे जोड़कर रखती हैं।काठमांडू केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का आधा भाग माने जाने की वजह से काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर का महत्व अपने आप बढ़ जाता है। लेकिन आज हम आपको बताएंगे इस मंदिर से जुड़े कुछ खास रहस्य।
पौराणिक कथा के अनुसार जब महाभारत के युद्ध में पांडवों द्वारा अपने ही रिश्तेदारों का रक्त बहाया गया तब भगवान शिव उनसे बेहद क्रोधित हो गए थे। श्रीकृष्ण के कहने पर वे भगवान शिव से मांफी मांगने के लिए निकल पड़े।गुप्त काशी गुप्त काशी में पांडवों को देखकर भगवान शिव वहां से विलुप्त होकर एक अन्य थान पर चले गए। आज इस स्थान को केदारनाथ के नाम से जाना जाता है।भैंस शिव का पीछा करते हुए पांडव केदारनाथ भी पहुंच गए लेकिन भगवान शिव उनके आने से पहले ही भैंस का रूप लेकर वहां खड़े भैंसों के झुंड में शामिल हो गए। पांडवों ने महादेव को पहचान तो लिया लेकिन भगवान शिव भैंस के ही रूप में भूमि में समाने लगे।इसपर भीम ने अपनी ताकत के बल पर भैंस रूपी महादेव को गर्दन से पकड़कर धरती में समाने से रोक दिया। भगवान शिव को अपने असल रूप में आना पड़ा और फिर उन्होंने पांडवों को क्षमादान दे दिया।लेकिन भगवान शिव का मुख तो बाहर था लेकिन उनका देह केदारनाथ पहुंच गया था। जहां उनका देह पहुंचा वह स्थान केदारनाथ और उनके मुख वाले स्थान पशुपतिनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।शिवलिंग की पूजा इन दोनों स्थानों के दर्शन करने के बाद ही ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने का पुण्य प्राप्त होता है। पशुपतिनाथ में भैंस के सिर और केदारनाथ में भैंस की पीठ के रूप में शिवलिंग की पूजा होती है।
नहीं मिलती पशु योनि पशुपति नाथ मंदिर के विषय में यह मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस स्थान के दर्शन करता है उसे किसी भी जन्म में पशु योनि प्राप्त नहीं होती। लेकिन साथ ही यह भी माना जाता है कि पशुपतिनाथ के दर्शन करने वाले व्यक्ति को सबसे पहले नंदी के दर्शन नहीं करने चाहिए, अगर ऐसा होता है तो उस व्यक्ति को पशु योनि मिलना तय होता है।आर्य घाट पशुपतिनाथ मंदिर के बाहर एक घाट स्थित है जिसे आर्य घाट के नाम से जाना जाता है। पौराणिक काल से ही केवल इसी घाट के पानी को मंदिर के भीतर ले जाए जाने का प्रावधान है। अन्य किसी भी स्थान का जल अंदर लेकर नहीं जाया जा सकता।रुद्राक्ष की माला पशुपतिनाथ विग्रह में चारों दिशाओं में एक मुख और एकमुख ऊपर की ओर है। प्रत्येक मुख के दाएं हाथ में रुद्राक्ष की माला और बाएं हाथ में कमंदल मौजूद है
अर्धनारीश्वर ये पांचों मुख अलग-अलग गुण लिए हैं। जो मुख दक्षिण की ओर है उसे अघोर मुख कहा जाता है, पश्चिम की ओर मुख को सद्योजात, पूर्व और उत्तर की ओर मुख को क्रमश: तत्वपुरुष और अर्धनारीश्वर कहा जाता है। जो मुख ऊपर की ओर है उसे ईशान मुख कहा जाता है।पशुपतिनाथ मंदिर का ज्योतिर्लिंग चतुर्मुखी है। ऐसा माना जाता है कि ये पारस पत्थर के समान है, जो लोहे को भी सोना बना सकता है।नेपाल की सामान्य जनता और स्वयं राजपरिवार के लिए भी पशुपतिनाथ ज्योतिर्लिंग ही उनके अराध्य देव हैं।धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व,,,पशुपतिनाथ मंदिर, हिन्दू धर्म के आठ सबसे प्रमुख स्थानों में से एक है। आपको ये जानकर भी खुशी होगी कि इस मंदिर को वैश्विक संस्था युनेस्को द्वारा विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की श्रेणी में भी रखा गया है। निश्चित तौर पर यह पशुपतिनाथ मंदिर के धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों ही महत्व को दर्शाता है।