लोक राग रंग उत्सव का 10 राज्यों में कार्यक्रम संपन्न लाल पद्मधर नाटक व लोकनृत्य की प्रभावपूर्ण प्रस्तुतियों से कलाकारों ने समां बांधा
लोक राग रंग उत्सव का 10 राज्यों में कार्यक्रम संपन्न लाल पद्मधर नाटक व लोकनृत्य की प्रभावपूर्ण प्रस्तुतियों से कलाकारों ने समां बांधा
प्रयागराज आज़ादी का अमृत महोत्सव”के अंतर्गत कला व संस्कृति के क्षेत्र में प्रयागराज की लोकप्रिय संस्था “एकता”द्वारा देश के दस राज्यों में चलाए जा रहे “लोक राग रंग उत्सव” का आयोजन सफलतापूर्वक संपन्न हो गया। दसवां एवं अंतिम आयोजन भोपाल (मध्य प्रदेश) के शहीद भवन ऑडिटोरियम में किया गया।संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से “एकता” संस्था द्वारा दस राज्यों में दो चरणों में आयोजित किया गया। पहले चरण के अंतर्गत 22 अगस्त से 29 अगस्त तक नई दिल्ली, हरियाणा,पंजाब,चंडीगढ़ एवं उत्तर प्रदेश में आयोजन किया गया। जबकि दूसरे चरण में 15 सितंबर से 22 सितंबर तक उत्तराखंड( जि. अल्मोड़ा), बिहार ( जि. पटना), झारखंड (जि. रांची), छत्तीसगढ़ (जि. रायगढ़) एवं अंतिम आयोजन मध्य प्रदेश (जि. भोपाल) में हुआ।
शहीद भवन ऑडिटोरियम में “एकता” संस्था द्वारा आयोजित “लोक राग रंग उत्सव” की दोनो ही प्रस्तुतियां प्रभावपूर्ण थीं।कलाकारों ने अपने शानदार प्रदर्शन से दर्शकों पर अमिट छाप छोड़ी। पहली प्रस्तुति स्वतंत्रता आंदोलन पर आधारित अजित दुबे का लिखा नाटक ” शहीद लाल पद्मधर”का मंचन युवा रंगकर्मी पंकज गौड़ के निर्देशन में किया गया।जबकि दूसरी प्रस्तुति में लोकनृत्य के माध्यम से भारत के विविध प्रांतों की संस्कृति व परंपरा को दिखाया गया। नाटक में अंग्रेजी हुकूमत द्वारा भारतीयों पर की जा रही बर्बरता,क्रूरता एवं दूसरी ओर भारतीय सेनाओं के संघर्ष की कहानी को बहुत मार्मिक रूप में प्रस्तुत किया गया।नाटक की कहानी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के युवा छात्र नेता लाल पद्मधर के इर्द गिर्द घूमती है।अगस्त क्रांति मैदान से जब अंग्रेजों से भारत छोड़ने को कहा जाता है उसी दौरान भारतीय आंदोलनकारी अंग्रेजी सैनिकों को खदेड़ने का प्रयास करते हैं तो दूसरी तरफ अंग्रेज़ी सैनिक ताबड़तोड़ गोलियों की बौछार कर देते हैं। इधर इलाहाबाद में लाल पद्मधर के नेतृत्व में छात्रों का हुजूम ज़िला कचहरी की ओर कूच करता है।अंग्रेजी सैनिक जब छात्रों की भीड़ को रोकने में असफल होने लगते हैं तो वो गोलियों की बौछार कर देते हैं।लाल पद्मधर अंग्रेजों की गोलियों की परवाह किए बिना पूरी निडरता के साथ हाथ में तिरंगा लिए आगे बढ़ते जाते हैं।उसी समय अंग्रेज़ी सैनिक की गोली सीधे उनके सीने आकर लगती है और वो वहीं उसी समय वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं।यहीं पर नाटक का अंत हो जाता है।इस मार्मिक दृश्य को देख कर दर्शक भावविभोर हो जाते हैं। सभी कलाकारों ने अपने प्रभावपूर्ण अभिनय से पूरे समय दर्शकों को नाटक से बंधे रखा।लाल पद्मधर की भूमिका में श्वेतांक मिश्रा,नयनतारा की भूमिका में प्रगति रावत, मां की भूमिका में शीला, मजहर की भूमिका में शरद कुशवाहा, डिक्सन की भूमिका में यश मिश्रा ने प्रभावपूर्ण अभिनय किया। आरिश जमील,प्रियांशु कुशवाहा, शुभेंद्रु कुमार, विक्रांत केसरवानी, हर्षल राज ने भी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया।संगीत परिकल्पना सोहित यादव,प्रकाश व्यवस्था अभिषेक गिरी,रूप सज्जा हमीद अंसारी,मंच व्यवस्था अलवीना, आशी,शरद यादव की थी।गीतकार कुमार विकास थे।लेखक अजित दुबे, सह निर्देशक सोहित यादव थे।नाट्य परिकल्पना एवं निर्देशन पंकज गौड़ ने किया।विविधता में एकता के रंग भरते देश के विविध प्रांतों की लोक कलाओं , परंपराओं को आकर्षक रूप में लोक नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। नृत्य के कलाकारों ने अपने भावपूर्ण नृत्यों से उपस्थित दर्शकों को खूब आनंदित किया।अलग अलग प्रांतों में गाए जाने वाले संस्कारी गीतों पर नृत्य प्रस्तुत किए गए। लोकनृत्य की कोरियोग्राफी सुप्रिया सिंह रावत एवं सुरेंद्र सिंह ने की।नृत्य के कलाकारों में प्राची, सौम्या चंद्रा, आरती यादव, अनूप कुमार, रामेहर सिद्धार्थ, खुशी, नेहा, महक, तनु, अंजु, दिव्या, साक्षी दुबे, मधुरिमा श्री, शिवानी पाल थीं।सम्पूर्ण आयोजन की परिकल्पना मनोज गुप्ता ने की।धन्यवाद ज्ञापित संस्था के महासचिव जमील अहमद ने किया।