November 21, 2024

पंच दिवाली के बहाने पंचवर्षीय सत्ता के प्रयास

0

पंच दिवाली के बहाने पंचवर्षीय सत्ता के प्रयास

वातावरण की बढती ठंडक में चुनावी गर्मी का जोर बढ चला है। मिजोरम, तेलंगाना, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ में निर्वाचन की प्रक्रिया चल रही है। विगत 7 नवम्बर को छत्तीसगढ की 20 सीटों पर तथा मिजोरम की सभी 40 सीटों पर मतदान हो चुका है। आगामी 17 नवम्बर को छत्तीसगढ की शेष सीटों सहित मध्य प्रदेश में मतदान होना है। इसी तरह 25 नवम्बर को राजस्थान तथा 30 नवम्बर को तेलंगाना में वोट डाले जायेंगे। भारत निर्वाचन आयोग व्दारा निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 3 दिसम्बर को मतगणना की जायेगी। इस बार के चुनावों में सभी पार्टियों ने अपने-अपने स्थापित सिध्दान्तों को तिलांजलि देकर अवसरवादिता के फैशन को पूरी तरह से अपना लिया है। यही हाल प्रत्याशियों का भी है। टिकिट की दौड में सफल न होने पर दूसरी दूसरी पार्टी का दामन थामने वाले उम्मीदवार कल तक जिसे दागदार कहते थे आज उसी की शरण में समर्पित दिख रहे हैं। मतदाता भी चुनाव को मनोरंजन का अतिरिक्त अवसर मानकर मजे ले रहा है। चौराहों से लेकर चौपालों तक चर्चाओं का बाजार गर्म है। कहा जा रहा है कि निर्वाचन आयोग के सिध्दान्तों की अब तो खुलेआम धज्जियां उड रहीं है और उत्तरदायी अधिकारी कथित ठोस प्रमाणों के अभाव का बहाना बनाकर अनेक स्थानों पर हाथ पर हाथ रखे बैठे हैं। सिटीजन कम्पलेन्ट के आनलाइन सिस्टम पर आने वाली अधिकांश शिकायतों पर साक्ष्य का अभाव लिखकर उन्हें बंद करने की रीति ही चल निकली है। जब ज्यादा हायतोबा मचने लगती है तो नोटिस जारी करके कर्तव्यों की इतिश्री कर ली जाती है। दारू, दौलत और दुनियावी साज-ओ-सामान परोसने का क्रम चल रहा है। वोटों के ठेकेदार गली-गली, गांव-गांव पैदा हो गये हैं। जाति के नाम पर, समाज के नाम पर, सम्प्रदाय के नाम पर, क्षेत्र के नाम पर, वंश के नाम पर, संगठन के नाम पर, अनुयायियों के नाम पर नित नये दावेदार जीत दिलाने का मायाजाल फैंक रहे हैं। प्रत्याशियों को घेरने, उनसे लाभ लेने, अहसान जताने, मुंह पर चाटुकारिता करने, वोट पक्का करने की ढिंढोरा पीटने वाले भोर से ही चुनावी दफ्तरों में हाजिरी लगाने पहुंच जाते हैं। उनके पास वकायदा दैनिक प्लान होता है जिसके तहत वे अपने दौरे का सिड्यूल भी स्वयं ही बनाकर लाते हैं। चुनाव कार्यालयों से वाहन हेतु तेल, दिनभर का खर्च, मार्ग हेतु भोजन के साथ-साथ प्रचार सामग्री प्राप्त करने के बाद ऐसे ठेकेदार पीछे के दरवाजे से अन्य उम्मीदवारों के आवासों में प्रवेश करते हैं। वहां पहुंचकर वे अपनी गुप्तचरी का प्रमाण प्रस्तुत करके मोटी रकमें ऐंठ लेते हैं। चुनावों में जहां पार्टियां अपने उम्मीदवारों की व्यक्तिगत छवि के साथ विपक्षी के अतीत को घातक बताकर मतदाताओं को रिझाने का काम कर रहीं है वहीं लालच का लालीपाप चटाने के लिए भी आतुर रहतीं है। मुफ्तखोरी, कर्जामाफी और सुविधाओं का अम्बार लगाने के आश्वासनों के साथ-साथ मतदाताओं की निजी समस्याओं के लिए चौबीसों घंटे खडे रहने का वायदा कर रहे सभी प्रत्याशियों को मतदाता समर्थन देने की बात कह रहा है। प्रत्याशियों का जनसम्पर्क समाप्त होने के बाद क्षेत्र में मंथन का दौर शुरू हो जाता है। कही-सुनी बातों पर देखी-जानी घटनाओं की मुहर लगाई जाती है। पार्टी के सिध्दान्तों से कहीं ज्यादा व्यक्तिगत मुद्दे उठाये जाते हैं। मतदाताओं के अलावा गैर मतदाता युवा भी अपने परिवारजनों, रिस्तेदारों, परिचितों के वोट दिलाने के नाम पर पार्टी कार्यालयों से लेकर प्रत्याशियों के जत्थों में भीड बढाने का काम करते देखे जा रहे हैं। ऐसी युवा पीढी रात होते ही ढावों के अन्दर बने केबिनों में शराब-कबाब की पार्टियां का उन्मुक्त सुख भोगने में जुटी है। बीते हुए कल की कटुता भुलाकर शत्रु को भी मित्र बनाने का क्रम भी चल निकला है। ऐसा करके समाज में विनम्रता का संदेश पहुंचे की मंशा वाले लोग अपने वोटों का प्रतिशत बढे की रणनीति पर काम कर रहे हैं। वर्तमान चुनावों में भाजपा का समीकरण बिगाडने में भितरघातियों का बहुत बडा हाथ होगा। वहीं कांग्रेस शासित राज्यों का नकारात्मक प्रदर्शन ही उसके लिए घातक होता जा रहा है। क्षेत्रीय दलों के साथ-साथ दलबदलू नेताओं के चुनावी मैदान में उतरने से भी पार्टियों के गढों में सेंध लगने लगी है। कुछ लोगों को तो अपने निजी हितों में आडे आने वाले नेता के वोट काटने के लिए ही मैदान में उतारा गया है। ऐसे प्रत्याशियों को प्रमुख राजनैतिक दल अपने खर्चे पर मैदान में उतारते हैं ताकि उन्हें चुनाव प्रचार से लेकर मतदान-मतगणना काल में सहयोग सके और विपक्षियों पर प्रहार करने के लिए एक सुरक्षित हथियार भी प्राप्त हो जाये। निर्वाचन प्रक्रिया को संचालित करने के लिए स्थानीय प्रशासनिक मशीनरी का ही उपयोग होता है। इस मशीनरी के सभी पुर्जे अपनी आदत के अनुसार ही काम करते हैं। यह अलग बात है कि आम दिनों में भर्राशाही, मनमानियां और मर्जी का बोलबाला ज्यादा रहता है जबकि निर्वाचन प्रक्रिया के दौरान पर्यवेक्षक की निगरानी बढ जाती है। ज्यादा चीख चिल्लाहट होने पर न्यायालय कडे हो जाते हैं। राजनैतिक दलों का धनबल अपने जनबल को सडकों पर उतारने के लिए तत्पर हो जाता है। प्रदर्शन के नाम पर तोडफोड, आगजनी, हिंसा का चलन भी चल निकला है जो कि आक्रोशित भीड के नाम पर निर्धारित लक्ष्य का भेदन करने के लिए उपयोगी माना जा रहा है। आगामी 17, 25 तथा 30 नवम्बर को होने वाले मतदान के लिए दीपावली पर्व के पांच दिन एक अवसर के रूप में सामने आये हैं। इस पंच दिवाली के बहाने पंचवर्षीय सत्ता के प्रयास निरंतर तेज होते जा रहे हैं। कहीं धनतेरस पर धन की वर्षा हुई तो कहीं नरकचौदस को सुख भविष्य के लिए उपहार दिये गये। कहीं दीपमालिका की भेंट पहुंची तो कहीं परमा का पावन प्रसाद बांटा जायेगा। भाई दोज पर तो बहिनों का भैया, बच्चों का मामा बनने वाले सगुन देने पहुंचेंगे। मतदान के पहले के उपहार और बाद की मुफ्तखोरी को रोके बिना करदाताओं के खून की कमाई पर पहरेदारी असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

 

रिपोर्ट उदय नारायण अवस्थी छतरपुर मध्यप्रदेश

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

चर्चित खबरे