गया में पुरखों को तारने के लिए पहुंची लाखों श्रद्धालुओं की भीड़, जानिए विष्णुपद मंदिर का महत्व
गया में पुरखों को तारने के लिए पहुंची लाखों श्रद्धालुओं की भीड़, जानिए विष्णुपद मंदिर का महत्व
बिहार के गया जिले में देशभर से लाखों श्रद्धालु शुक्रवार को विष्णुपद मंदिर पहुंचे और हिंदू मान्यता के अनुसार वहां पिंडदान करके अपने पूर्वजों को जन्म-मत्यु के चक्र से मुक्त कराने का कार्य करेंगे।वार्षिक पितृ पक्ष मेले की शुरुआत के साथ दूर-दूर से गया पहुंचे श्रद्धालुओं ने फल्गु नदी में स्नान किया। उसके बाद पुजारियों की सहायता से पितरों को तारने के लिए धार्मिक अनुष्ठान करते हुए पूर्वजों के लिए पिंडदान किया। विष्णुपद मंदिर के पुजारी विनोद पांडे ने कहा,”हिंदू परंपराओं के अनुसार पितरों को दक्षिण आकाशीय क्षेत्र में पिंडदान किया जाता है। इसलिए वह क्षण जब सूर्य उत्तर से पारगमन करता है तो दक्षिण आकाशीय क्षेत्र को पितरों के दिन की शुरुआत माना जाता है। इसी क्षण को हिंदू धर्म में सबसे पवित्र माना जाता है और इसलिए इसी समय पर पिंडदान किया जाता है।”उन्होंने कहा, “हिंदू कैलेंडर के 16 चंद्र दिवस की अवधि में हिंदू लोग अपने पुरखों को जल देते है और पिंडदान करते हैं। इसके लिए गया में दुनिया के सभी कोनों से लगभग 10 लाख से 20 लाख तीर्थयात्रीपितृ पक्ष मेले में आते हैं।गया में विष्णुपद मंदिर के आसपास की दुकानों और स्टालों में लोग श्राद्ध अनुष्ठान से संबंधित आवश्यक पूजा सामग्री खरीदते हैं। जिसमें केले के पत्ते, तांबे की प्लेट, काली तिल, शहद, काले चने, चंदन का पेस्ट, जौ का आटा और सुपारी जैसी वस्तुओं शामिल हैं।मान्यता है कि पितृ पक्ष के 16-चंद्र दिवस में हिंदू अपने पितरों को याद करते हैं और उनके लिए विशेष रूप बनाया गया भोजन और जल अर्पित करते हैं। इसी कारण इस अवधि को पितृ पक्ष के नाम से भी जाना जाता है।परंपरा है कि पूर्वजों को दिया जाने वाला भोजन आमतौर पर चांदी या तांबे के बर्तनों में पकाया जाता है और आम तौर पर केले के पत्ते पर उन्हें जल के साथ परोसा जाता है।इस वर्ष पितृ पक्ष 29 सितंबर से शुरू होता है और 14 अक्टूबर को समाप्त होता है। इस दौरान पितृ पक्ष मानने वाले व्यक्ति को सुबह में सबसे पहले स्नान करना चाहिए। उसके बाद धोती पहनकर दुर्बा या कुश की बनी अंगूठी पहनकर पितरों को याद करते हुए काली तिल और जल अर्पण करना चाहिए।