लोग जान हथेली पर लेकर आवासों में रह रहे
घर नहीं मौत के शामियाने हैं यहां हर वक्त रहता है जान का खतरा, कभी भी हो सकता है हादसा
लखनऊ उत्तर रेलवे लखनऊ मंडल की बरहा व एलडी कॉलोनी की तरह लगभग सभी कॉलोनियों में निष्प्रयोज्य आवास हैं, जहां लोग अवैध रूप से रह रहे हैं। आरपीएफ इंजीनियरिंग विभाग के अफसरों की मिली भगत से यह कारोबार फलफूल रहा है। यही नहीं, कार्रवाई होती भी है तो यूनियन नेताओं के दबाव में अफसर बैकफुट पर आ जाते हैं।गत दिवस आनंदनगर स्थित फतेह अली रेलवे कॉलोनी में एक निष्प्रयोज्य आवास की छत गिर जाने से मलबे में दबकर सतीश, उसकी पत्नी सलोनी व तीन बच्चों की मौत हो गई थी। हादसे के बाद रेलवे कॉलोनियों की बदहाली व उनके अवैध कब्जों की पड़ताल शुरू करने की तैयारी है। दरअसल, रेलवे प्रशासन ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि आवासों को निष्प्रयोज्य घोषित किया जा चुका है।आवास खाली कराने के लिए नोटिस दिए जा चुके हैं। बावजूद इसके लोग अवैध रूप से काबिज हैं। लेकिन सवाल यह भी है कि केवल नोटिस देकर अफसरों ने इतिश्री कर ली। आवासों को खाली कराने के प्रयास क्यों नहीं किए गए।यही नहीं, कमोबेश यही हाल रेलवे की अन्य कॉलोनियों का है, जहां निष्प्रयोज्य आवासों में सैकड़ों लोग रह रहे हैं और रेलवे अफसर आंखें मूंदे हैं। 700 आवास निष्प्रयोज्य घोषित किए जा चुके हैं, रेलवे की 32 कॉलोनियां हैं, जिसमें पांच हजार के आसपास लोग अवैध रूप से रहे हैं।
बरहा रेलवे कॉलोनी में 120 आवास ऐसे हैं, जो जर्जर हो चुके हैं। इसमें रहने वाले रेलकर्मियों को बुनियादी सुविधाएं तक मयस्सर नहीं हैं। आधे से अधिक आवासों में रेलवे अफसरों, आरपीएफ आदि की मिलीभगत से लोग अवैध रूप से रहे हैं।आलमबाग स्थित रेलवे की एलडी कॉलोनी की हालत तो और भी बदहाल है। यहां करीब ढाई सौ आवास होंगे, जिसमें अस्सी प्रतिशत कब्जेदार हैं। इंजीनियरिंग विभाग के अफसरों की मिलीभगत से जर्जर आवासों को किराए पर उठाया जाता है, जहां सुरक्षा आरपीएफ देती है और बिजली का इंतजाम रेलवे अफसर करवाते हैं।रेलवे अफसर खुद बताते हैं कि सेंट्रल पावर हाउस सीपीएच कॉलोनी, पंजाबनगर कॉलोनी, पिंजड़े वाली गली, एलडी कॉलोनी, बरहा कॉलोनी, फतेहअली कॉलोनी, मुनव्वरबाग, शांतिपुरम आदि कॉलोनियों में अवैध कब्जे हैं।
रेलवे कॉलोनियों के जिन जर्जर व निष्प्रयोज्य आवासों में अवैध रूप से लोग रह रहे हैं, उनकी स्थिति यह है कि सरिया बाहर निकली हुई हैं। गारा बचा नहीं, प्लास्टर झड़ चुका है, खिड़कियां नहीं हैं और छज्जे जगह-जगह से टपकते हैं। बावजूद इसके लोग जान हथेली पर लेकर आवासों में रह रहे हैं।