सामान्य रूप से एफआईआर रद्द नहीं की जा सकती — इलाहाबाद हाईकोर्ट

प्रयागराज।इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि सामान्य परिस्थितियों में दर्ज एफआईआर को अदालत रद्द नहीं कर सकती। केवल उन्हीं मामलों में हस्तक्षेप किया जा सकता है, जहां एफआईआर से कोई संज्ञेय अपराध प्रकट नहीं हो रहा हो, या जहां विवेचना को जारी रखना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग प्रतीत हो रहा हो।
खंडपीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि एक ही घटना और संव्यवहार को लेकर दूसरी एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती। हालांकि, यदि किसी घटना से संबंधित एक अपराध का निस्तारण हो गया हो, और उसी घटनाक्रम से जुड़े भिन्न तथ्यों या अलग अपराधों के लिए नई एफआईआर दर्ज की जाए, तो उसे “दूसरी एफआईआर” नहीं माना जाएगा।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह और न्यायमूर्ति लक्ष्मी कांत शुक्ल की खंडपीठ ने पारूल बुधराजा व तीन अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए दी।
मामले में याचिकाकर्ताओं का कहना था कि गाजियाबाद के लिंक रोड थाने में उनके खिलाफ दो एफआईआर दर्ज की गई हैं — एक ऋषभ अग्निहोत्री और दूसरी शुभम अग्निहोत्री द्वारा।
पहली एफआईआर में आरोप था कि वर्ष 2019 में याचिकाकर्ताओं ने “क्यू-नेट” शैली में ट्रैवल पैकेज और हेल्थ प्रोडक्ट्स के नाम पर शिकायतकर्ता से 7,50,000 रुपये का निवेश कराया।
दूसरी एफआईआर में आरोप लगाया गया कि उसी लेनदेन को लेकर आरोपियों ने फर्जी हस्ताक्षर, मुहर और फर्जी नोटरी दस्तावेजों के माध्यम से शिकायतकर्ता को गुमराह किया।
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि यह उसी घटना से जुड़ी दूसरी एफआईआर है, जिसे रद्द किया जाना चाहिए क्योंकि यह न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग और संविधान के अनुच्छेद 14, 20 और 21 के मूल अधिकारों का हनन है।
वहीं, शिकायतकर्ता की ओर से कहा गया कि दोनों एफआईआर भले ही एक ही व्यवहार से संबंधित प्रतीत होती हों, परंतु उनके वाद कारण (cause of action) अलग-अलग हैं, इसलिए इसे “दूसरी एफआईआर” नहीं कहा जा सकता।
अदालत ने इस तर्क से सहमति जताते हुए कहा कि पीड़ित द्वारा दर्ज की गई एफआईआर से अलग अपराध का खुलासा होता है, इसलिए उसे रद्द करने का कोई आधार नहीं बनता।
इस आधार पर हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप से इनकार करते हुए याचिका खारिज कर दी।

