टेक्नोलॉजी के चैंपियन हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी- अश्विनी वैष्णव
क्या आपको वह समय याद है जब सरकारी दस्तावेज़ को हासिल करना कितना मशक्कत का काम होता था ? कई बार चक्कर लगाने पड़ते थे, लंबी लाइनें लगती थीं, और कभी-कभी बेवजह की फीस देनी पड़ती थी। अब वही दस्तावेज़ सीधे आपके फ़ोन पर मिल जाते हैं।
यह बदलाव यूं ही नहीं हुआ। प्रधानमंत्री मोदी ने तकनीक को भारत का सबसे बड़ा समान अवसर देने वाला साधन बना दिया। मुंबई का एक रेहड़ी-पटरी वाला वाला भी वही यूपीआई पेमेंट सिस्टम इस्तेमाल करता है, जो एक बड़ी कंपनी का अधिकारी करता है। उनकी सोच में तकनीक पद के अनुरूप किसी ऊंच-नीच को नहीं मानती।
यह बदलाव उनकी मूल सोच अंत्योदय को दर्शाता है- यानी कतार में खड़े सबसे आखिरी व्यक्ति तक पहुंचना। हर डिजिटल पहल का मकसद है कि तकनीक को सबके लिए समान रूप से उपलब्ध कराना। गुजरात में शुरू हुए ये प्रयोग ही भारत की डिजिटल क्रांति की नींव बने।
गुजरात: जहां से शुरुआत हुई
मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी जी ने तकनीक और नवाचार के ज़रिए गुजरात को बदला। 2003 में शुरू की गई ज्योतिग्राम योजना में फीडर सेपरेशन तकनीक का उपयोग किया गया। इससे ग्रामीण उद्योगों को 24×7 बिजली मिली और तय समय पर खेतों को बिजली मिलने से ज़मीन के नीचे का पानी कम गति से घटने लगा।
महिलाएं रात में पढ़ाई कर सकीं और छोटे व्यवसाय फले-फूले, जिससे गाँव से शहर की ओर पलायन घटा। एक अध्ययन के अनुसार, इस योजना पर किए गए 1,115 करोड़ रुपये के निवेश की भरपाई सिर्फ़ ढाई साल में हो गई।
2012 में उन्होंने नर्मदा नहर पर सोलर पैनल लगाने का निर्णय लिया। इस परियोजना से हर साल 1.6 करोड़ यूनिट बिजली बनी, जो लगभग 16,000 घरों के लिए काफ़ी थी। साथ ही, नहर के पानी का वाष्पीकरण कम हुआ और पानी की उपलब्धता बढ़ी।
एक ही पहल से कई समस्याओं का समाधान निकालना मोदी जी की तकनीक दृष्टि को दर्शाता है। स्वच्छ ऊर्जा बनाना और पानी बचाना, दोनों साथ-साथ। यह दक्षता और प्रभाव का उदाहरण था, जो साधारण समाधानों से कहीं अधिक था।
इस नवाचार को अमेरिका और स्पेन द्वारा अपनाया जाना इसकी प्रभावशीलता को और मज़बूत करता है।
ई-धरा प्रणाली से ज़मीन के कागज़ात डिजिटल हुए। स्वागत पहल से नागरिक वीडियो कांफ्रेंसिंग द्वारा मुख्यमंत्री से सीधे जुड़ सके। ऑनलाइन टेंडरिंग से भ्रष्टाचार पर रोक लगी।
इन पहलों से भ्रष्टाचार घटा और सरकारी सेवाओं तक पहुंच आसान हुई। लोगों का शासन पर भरोसा लौटा, जिसका असर गुजरात में लगातार मिलती बड़ी चुनावी सफलताओं में दिखा।
राष्ट्रीय परिदृश्य
2014 में उन्होंने गुजरात का अनुभव और सीख को दिल्ली तक पहुंचाया। लेकिन पैमाना कहीं बड़ा था।
उनके नेतृत्व में इंडिया स्टैक ने जो आकार लिया, वह दुनिया का सबसे समावेशी डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर बनकर उभरा है। इसकी बुनियाद जैम ट्रिनिटी (जन धन, आधार, मोबाइल) पर रखी गई।
जन धन खातों ने 53 करोड़ से अधिक लोगों को बैंकिंग सिस्टम से जोड़ा। जो लोग अब तक आर्थिक रूप से बाहर थे, वे पहली बार औपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बने।
ठेले वाले, दिहाड़ी मज़दूर और ग्रामीण परिवार, जो केवल नकद पर निर्भर रहते थे, अब बैंक खातों से जुड़े। इससे उन्हें सुरक्षित बचत करने, सीधे सरकारी लाभ पाने और आसानी से क़र्ज़ प्राप्त करने का अवसर मिला।
आधार ने नागरिकों को डिजिटल पहचान दी। अब तक 142 करोड़ से ज़्यादा पंजीकरण हो चुके हैं। इससे सरकारी सेवाओं तक पहुंचना आसान हुई, जहां पहले कई दस्तावेज़ों की जांच की ज़रूरत पड़ती थी।
डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) ने बिचौलियों को हटा दिया और गड़बड़ी कम की। अब तक डीबीटी से 4.3 लाख करोड़ रुपये से अधिक की बचत हुई है। यही पैसा स्कूल, अस्पताल और अन्य बुनियादी ढांचे बनाने में लगाया जा रहा है।
पहले ग्राहक की पहचान (केवाईसी) की प्रक्रिया कठिन थी। इसमें कागज़ी दस्तावेज़ों की जांच, मैनुअल प्रक्रिया और कई बार की भाग-दौड़ शामिल होती थी। इससे सेवा प्रदाताओं को हर वेरिफ़िकेशन पर काफी खर्च करना पड़ता था। आधार-आधारित ई-केवाईसी ने इस खर्च को घटाकर मात्र 5 रुपये में कर दिया। अब छोटे से छोटे लेन-देन भी आर्थिक रूप से संभव हो गए हैं।
यूपीआई ने भारत के भुगतान करने का तरीका बदल दिया। अब तक 55 करोड़ से ज़्यादा लोग इसका इस्तेमाल कर चुके हैं। सिर्फ़ अगस्त 2025 में ही 20 अरब से अधिक लेन-देन हुए, जिनकी कुल राशि 24.85 लाख करोड़ रुपये रही।
अब पैसे भेजना बैंक में घंटों की परेशानी नहीं, बल्कि मोबाइल पर 2 सेकंड से भी कम का काम है। बैंक जाने, लाइन लगाने और कागज़ी प्रक्रिया की जगह अब क्यूआर कोड स्कैन से तुरंत भुगतान हो जाता है।
आज भारत दुनिया के कुल रियल-टाइम डिजिटल पेमेंट्स का आधा हिस्सा अकेले संभालता है। दस साल पहले भारत ज़्यादातर नकद पर निर्भर था। प्रधानमंत्री मोदी की सोच ने जैम ट्रिनिटी और यूपीआई ढांचे को अंतिम रूप दिया।
जब कोविड आया और उन्होंने डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा दिया, तो यह पूरा सिस्टम कामयाब साबित हुआ। नतीजा यह है कि आज यूपीआई, वैश्विक स्तर पर वीज़ा से भी अधिक लेन-देन करता है। एक साधारण मोबाइल फ़ोन अब बैंक, पेमेंट गेटवे और सर्विस सेंटर… सब कुछ बन गया है।
प्रगति ने शासन में जवाबदेही लाने का काम किया। यह प्लेटफ़ॉर्म प्रधानमंत्री को सीधे प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग से जोड़ता है, जहां हर महीने वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिए समीक्षा होती है। जब अधिकारियों को पता होता है कि प्रधानमंत्री लाइव वीडियो में उनका काम देखेंगे, तो जवाबदेही अपने आप बढ़ जाती है।
जैसे किसी राजमार्ग परियोजना में देरी हो रही हो, तो प्रगति समीक्षा के दौरान तुरंत उस पर ध्यान दिया जाता है और अधिकारियों को देरी का कारण बताना पड़ता है। इससे तुरंत सुधार होता है और आखिरकार जनता को सीधा लाभ मिलता है।
सबके लिए तकनीक
तकनीक ने खेती और स्वास्थ्य सेवाओं को पूरी तरह बदल दिया है। हरियाणा के किसान जगदेव सिंह अब फ़सल से जुड़े फैसले लेने के लिए एआई ऐप्स का इस्तेमाल करते हैं। उन्हें मौसम की जानकारी और मिट्टी की सेहत का डेटा सीधे मोबाइल पर मिल जाता है।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के ज़रिए 11 करोड़ किसानों को सीधी आय सहायता डिजिटल माध्यम से पहुंचाई जाती है।
डिजी-लॉकर के अब 57 करोड़ से ज़्यादा उपयोगकर्ता हैं, जिनमें 967 करोड़ दस्तावेज़ डिजिटल रूप से सुरक्षित रखे गए हैं। आपका ड्राइविंग लाइसेंस, डिग्री सर्टिफ़िकेट, आधार और अन्य सरकारी दस्तावेज़ अब आपके फ़ोन में सुरक्षित रहते हैं।
सड़क पर पुलिस चेकिंग के दौरान अब कागज़ ढूंढने की ज़रूरत नहीं। बस डिजी-लॉकर से डिजिटल लाइसेंस दिखा दीजिए। आधार ऑथेंटिकेशन से आयकर रिटर्न भरना भी बेहद आसान हो गया है। जहां पहले ढेर सारे दस्तावेज़ों की फ़ाइलें साथ ले जानी पड़ती थीं, अब सब कुछ आपकी जेब में मोबाइल पर समा गया है।
अंतरिक्ष और नवाचार
भारत ने वह कर दिखाया जो असंभव सा लगता था। मंगल तक पहली कोशिश में पहुंचना और वह भी इतने कम खर्चे में, जितना एक हॉलीवुड फ़िल्म पर भी नहीं लगता। मंगलयान मिशन केवल 450 करोड़ में पूरा हुआ, जिसने साबित किया कि भारतीय इंजीनियरिंग विश्वस्तरीय नतीजे दे सकती है।
चंद्रयान-3 ने भारत को चाँद पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला चौथा देश बनाया और चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश।
इसरो ने एक ही मिशन में 104 उपग्रह छोड़े, जो एक विश्व रिकॉर्ड है। अब भारतीय रॉकेट 34 देशों के उपग्रह अंतरिक्ष में पहुँचा रहे हैं। गगनयान मिशन भारत को चौथा ऐसा देश बनाएगा जो अपनी स्वदेशी तकनीक से इंसानों को अंतरिक्ष में भेजेगा। प्रधानमंत्री मोदी हमारे वैज्ञानिकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे और उनकी क्षमताओं पर पूरा भरोसा रखते हैं।
वैश्विक नेतृत्व
जब कोविड-19 आया, तो पूरी दुनिया वैक्सीन बांटने की अफरा-तफरी से जूझ रही थी। भारत ने अपनी ताक़त दिखाते हुए समाधान दिया। कोविन प्लेटफ़ॉर्म रिकॉर्ड समय में बनाया गया। यह दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान का एक संपूर्ण डिजिटल समाधान था।
इस प्लेटफ़ॉर्म ने 200 करोड़ से अधिक वैक्सीन डोज़ को सटीक डिजिटल ढंग से संभाला। न कोई ब्लैक मार्केटिंग, न पक्षपात सिर्फ़ पारदर्शी वितरण।
डायनैमिक एलोकेशन की वजह से बर्बादी रुकी। बची हुई वैक्सीन तुरंत उन इलाक़ों में भेज दी जाती थी जहां ज़्यादा ज़रूरत थी। यह उपलब्धि दिखाती है कि जब तकनीक को राजनीतिक इच्छाशक्ति का सहारा मिलता है, तो वह बहुत बड़े स्तर पर और पूरी निष्पक्षता के साथ परिणाम दे सकती है।
मैन्युफैक्चरिंग क्रांति
चीज़ें बनाने का असली नियम यह है कि आप सीधे चिप्स बनाने पर नहीं कूद सकते, पहले बुनियादी चीज़ें सीखनी पड़ती हैं। यह बिल्कुल वैसे है जैसे कोडिंग सीखते समय सबसे पहले “हैलो वर्ल्ड” से शुरुआत होती है, उसके बाद ही बड़े ऐप्स बनाए जाते हैं।
इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन भी इसी क्रम का पालन करता है। देश पहले असेंबली में महारत हासिल करते हैं, फिर सब-मॉड्यूल्स, कंपोनेंट्स और उपकरणों तक आगे बढ़ते हैं। भारत की यात्रा भी इसी प्रगति को दर्शाती है।
प्रधानमंत्री की दृष्टि के तहत, आज हमारी मजबूत इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन क्षमता हमें उन्नत सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग की ओर छलांग लगाने में मदद कर रही है।
भारत लंबे समय से डिज़ाइन टैलेंट का केंद्र रहा है। दुनिया के 20% से ज़्यादा चिप डिज़ाइनर यहीं हैं। अब भारत 2 नैनोमीटर (एनएम), 3 एनएम और 7 एनएम जैसे एडवांस्ड चिप्स डिज़ाइन करने में सक्षम है। ये चिप्स भारत में डिज़ाइन होकर दुनिया भर के लिए बनाए जा रहे हैं।
वर्तमान में फ़ैब्स और पैकेजिंग फ़ैसिलिटीज़ बनाने पर फोकस करना इस प्राकृतिक विकास का अगला कदम है। लेकिन यह सोच केवल निर्माण तक सीमित नहीं है। सेमीकंडक्टर उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले केमिकल्स, गैस और विशेष सामग्री को भी समर्थन दिया जा रहा है।
इससे केवल फैक्ट्रियाँ नहीं, बल्कि एक पूरा ईकोसिस्टम खड़ा हो रहा है। यह सब प्रधानमंत्री मोदी की वैल्यू चेन की गहरी समझ से संभव हुई है। क्षमता को कदम-दर-कदम विकसित करना और हर चरण को मजबूत बनाना, उसके बाद ही अगले स्तर पर बढ़ना।
बुद्धिमत्ता से युक्त बुनियादी ढाँचा
पीएम गति शक्ति पोर्टल जीआईएस तकनीक का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करता है। हर बुनियादी ढांचे की परियोजना डिजिटल रूप से मैप की जाती है। सड़कें, रेल, हवाई अड्डे और बंदरगाह अब साथ में योजना बनाकर तैयार होते हैं। अब अलग-अलग विभागों में बिखरा काम नहीं, और न ही तालमेल की कमी से होने वाली देरी।
इंडिया एआई मिशन के तहत 38,000 से अधिक जीपीयू उपलब्ध कराए गए हैं, वह भी वैश्विक लागत के एक-तिहाई दाम पर। इससे स्टार्टअप, शोधकर्ताओं और छात्रों को सिर्फ़ 67 रुपये प्रति घंटे की दर पर सिलिकॉन वैली जैसी कंप्यूटिंग सुविधा मिली है।
एआईकोश प्लेटफ़ॉर्म पर 2,000 से ज़्यादा डेटा सेट मौजूद हैं। मौसम से लेकर मिट्टी की सेहत तक। इन्हीं की मदद से भारत की भाषाओं, क़ानूनों, स्वास्थ्य प्रणालियों और वित्त क्षेत्र के लिए स्थानीय एलएलएम विकसित किए जा सकते हैं।
तकनीक को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की समझ भारत की अनूठी एआई रेगुलेशन नीति में भी दिखाई देती है। दुनिया के केवल बाज़ार-आधारित या सरकार-नियंत्रित मॉडल से अलग, वे एक विशिष्ट टेक्नो-लीगल फ्रेमवर्क की कल्पना करते हैं।
सख़्त नियम बनाकर नवाचार को रोकने के बजाय, सरकार तकनीकी सुरक्षा उपायों में निवेश करती है। विश्वविद्यालय और आईआईटी मिलकर डीपफेक, गोपनीयता और साइबर सुरक्षा जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए एआई-आधारित उपकरण विकसित कर रहे हैं। यह दृष्टिकोण नवाचार को बढ़ावा देता है और साथ ही सुनिश्चित करता है कि तकनीक ज़िम्मेदारी के साथ लागू हो।
बुनियादी ढाँचे में तकनीक
केवड़िया में बनी स्टैच्यू ऑफ यूनिटी 182 मीटर ऊंची है। यह दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है। 3डी मॉडलिंग और ब्रॉन्ज क्लैडिंग तकनीक से बनी यह प्रतिमा हर साल लगभग 58 लाख पर्यटकों को आकर्षित करती है। इस परियोजना से हज़ारों नौकरियाँ बनीं और केवड़िया एक बड़ा पर्यटन केंद्र बन गया।
चिनाब पुल 359 मीटर ऊंचा है, जो कश्मीर को भारत के बाकी हिस्सों से जोड़ता है। आइजोल रेल लाइन कठिन पहाड़ी इलाक़े से होकर गुजरती है और इसमें हिमालयन टनलिंग मेथड का प्रयोग किया गया है, जिसमें कई सुरंगें और पुल शामिल हैं। नया पंबन पुल सौ साल पुराने ढांचे की जगह आधुनिक इंजीनियरिंग से बनाया गया है।
ये सिर्फ़ इंजीनियरिंग की अद्भुत कृतियां नहीं हैं, बल्कि यह मोदी जी की उस सोच को दर्शाते हैं जिसमें तकनीक और दृढ़ संकल्प के सहारे भारत को जोड़ा जा रहा है।
मानव जुड़ाव
प्रधानमंत्री मोदी तकनीक को समझते हैं, लेकिन इंसानों को उससे भी बेहतर समझते हैं। उनकी अंत्योदय की सोच ही हर डिजिटल पहल को आगे बढ़ाती है। यूपीआई कई भाषाओं में काम करता है। सबसे गरीब किसान और सबसे अमीर उद्योगपति, दोनों की एक जैसी डिजिटल पहचान है।
सिंगापुर से लेकर फ्रांस तक कई देश यूपीआई से जुड़े हैं। जी-20 ने डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर को समावेशी विकास के लिए अहम् माना है। जापान ने इसके लिए पेटेंट भी दिया है। जो शुरुआत में भारत का समाधान था, वही अब पूरी दुनिया के लिए डिजिटल लोकतंत्र का मॉडल बन गया।
गुजरात में शुरुआती प्रयोगों से लेकर डिजिटल इंडिया के शुभारंभ तक की यात्रा यह दिखाती है कि तकनीक में बदलाव लाने की शक्ति है। मोदी जी ने तकनीक को शासन की भाषा बना दिया है। उन्होंने साबित किया है कि जब नेता तकनीक को इंसानियत के साथ अपनाते हैं, तो पूरा देश भविष्य की ओर बड़ी छलांग लगा सकता है।