September 16, 2025

एनसीजेडसीसी द्वारा विभाजन की विभिषिका के अवसर पर आयोजित व्याख्यान में वक्ताओं ने रखे अपने विचार

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एनसीजेडसीसी द्वारा विभाजन की विभिषिका के अवसर पर आयोजित व्याख्यान में वक्ताओं ने रखे अपने विचार


प्रयागराज। देश का विभाजन एक ऐसी त्रासदी है, जो भुलाये नहीं भूलती है। देश के कई ऐसे परिवार हैं जो आज भी इस त्रास्दी से उबर नहीं पाये हैं। दरअसल 18 फरवरी 1946 को जब अंग्रेजों की सेना रॉयल एयर फोर्स में दो हजार भारतीय सैनिकों ने बगावत कर दी थी, तभी अंग्रेज समझ गये थे कि अब भारत में उनके दिन लद गये हैं। यही वजह थी कि उन्होंने फूट डालो और राज करो की नीति को तेज कर दिया। जिन्ना सहित कई नेता उनकी इस चाल में फंस गये और देश का विभाजन टाला नहीं जा सका। उक्त बात इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सेन्टर ऑफ मीडिया स्टडीज के कोर्स कोआर्डिनेटर डा0 धनंजय चोपड़ा ने कही। डा0 चोपड़ा उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र द्वारा मोती लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में ‘‘विभाजन की विभीषिका दिवस’’ पर आयोजित व्याख्यान कार्यक्रम में बोल रहे थे। डा0 चोपड़ा ने कहा कि माउण्टबेटेन ने सिरिल रेडक्लिफ को भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन रेखा तय करने की जिम्मेदारी दी थी। रेडक्लिफ ने बड़ी चालाकी से पंजाब और बंगाल को इस तरह बांटा कि दोनों ही बटवारे की आग में जल उठे। वे दिन खून के छीटों और आंसुओं से सराबोर हो जाने के दिन थे। हजारों हजार परिवार इधर से उधर हो गये और उसकी पीड़ा आज तक बनी हुई है। यह दिन हर वर्ष इस लिए दोहराना चाहिए ताकि फिर ऐसी घटनाएं न दोहरने पायें। वही दूसरी ओर शम्भूनाथ मेडिकल कॉलेज में मुख्य वक्ता प्रदीप भटनागर ने कहा कि आजादी से पहले देश विभाजन का जो दंश मिला है, उसे भुलाया नहीं जा सकता। 1947 का विभाजन भारत के इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक था, जिसमें लाखों निर्दोष लोग मारे गए और करोड़ों को अपना घर-बार छोड़ना पड़ा।
उन्होंने कहा कि देश को तुष्टीकरण की नहीं अपितु संतुष्टीकरण की नीति का पालन करके सबका साथ सबका विकास का अनुसरण करना होगा। इसके बाद भारत भाग्य विधाता के चेयरमैन वीरेंद्र पाठक ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि वर्ष 1947 में हुआ भारत का विभाजन दरअसल इसकी परिकल्पना तत्कालीन इलाहाबाद (वर्तमान प्रयागराज) में वर्ष 1920 में ही बन चुकी थी। उन्होंने बताया कि यह तथ्य बहुत कम लोगों को ज्ञात है। उन्होंने कहा कि इस विभाजन की त्रासदी में हजारों लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी और लाखो लोग विस्थापित हो गए। श्री पाठक ने युवाओं से आह्वान किया कि वे इतिहास से सीख लेकर देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने में योगदान दें। इस अवसर पर शहर के कई गणमान्य तथा छात्र- छात्राएं उपस्थित रही।

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