बाढ़! कहीं श्रद्धा का उत्सव, तो कहीं त्रासदी भक्ति और पीड़ा के बीच उलझा ‘प्रयागराज’
भक्ति और पीड़ा के बीच उलझा ‘प्रयागराज’
गंगा और यमुना नदियों का जलस्तर खतरे के निशान को पार कर चुका है। एक तरफ शहर के निचले इलाकों में पानी भरने से लोगों की दिनचर्या ठप हो गई है, तो वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया पर कई ऐसे वीडियो वायरल हो रहे हैं जिनमें लोग मां गंगा के घर तक आने की घटना को अलौकिक अनुभूति मानकर पूजा-पाठ, आरती और उत्सव करते दिख रहे हैं। यह दृश्य एक ही शहर के दो अलग-अलग मनोभावों को दर्शाता है । कही आस्था का उत्सव, तो कहीं विपदा से जूझती ज़िंदगी।
इस आध्यात्मिक भावुकता के विपरीत एक और सच्चाई है वो है बाढ़ से बेहाल नागरिकों की पीड़ा। करेली, राजापुर, दारागंज, गंगानगर और झूंसी बघाड़ा, सलोरी, आदि जैसे क्षेत्रों में सैकड़ों घरों में पानी घुस चुका है। हजारों लोग राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं। उनके लिए यह कोई धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी की जद्दोजहद है। कई परिवारों का सामान पानी में बह गया है, बच्चों की पढ़ाई रुक गई है, और बुज़ुर्गों की दवाइयां तक नहीं मिल पा रही हैं।
इस विरोधाभास को देखकर प्रश्न उठता है क्या यह आस्था का उत्सव है या ‘भक्ति’ का दिखावा? क्या सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो सच्ची श्रद्धा के प्रतीक हैं या केवल लाइक और व्यूज़ पाने की होड़?
दरअसल, यह परिस्थिति हमें एक गहरा संदेश देती है मां गंगा ने कभी भी किसी के प्रति पक्षपात नहीं किया। उन्होंने सबको अपनी गोद में स्थान दिया है, भक्त को भी और पीड़ित को भी।
महाकुंभ के दौरान मां ने अपने पावन तटों को इतना विस्तृत कर दिया कि 67 करोड़ लोगों को स्नान का सौभाग्य मिल सका। पर आज वही क्षेत्र पानी में डूबा हुआ है। यह दर्शाता है कि गंगा का मूल स्थान उनका है, हमने ही अतिक्रमण करके उन्हें सीमित करने की कोशिश की।
इसलिए आज आवश्यकता है श्रद्धा के साथ-साथ संवेदना की भी। जो लोग सुरक्षित हैं, उन्हें पीड़ितों की मदद करनी चाहिए। भोजन, वस्त्र, दवाइयां और आश्रय यही इस समय की सबसे बड़ी सेवा है। यही मां गंगा की सच्ची पूजा है।
इसलिए, आज यह सवाल मत पूछिए कि गंगा के बढ़ते जल में रोया जाए या हँसा जाए, उत्सव मनाया जाए या चिंता की जाए आज जरूरत है साथ देने की, समझदारी की और सच्ची भक्ति की। क्योंकि मां गंगा सबकी मां हैं।