आराधना-महोत्सव- ज्योतिष्पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी शांतानंद सरस्वती के संघर्ष और समर्पण से ही अस्तित्व में बची ज्योतिष्पीठ – शंकराचार्य वासुदेवानंद
आराधना-महोत्सव- ज्योतिष्पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी शांतानंद सरस्वती के संघर्ष और समर्पण से ही अस्तित्व में बची ज्योतिष्पीठ – शंकराचार्य वासुदेवानंद
प्रयागराज, 15 दिसम्बर। श्रीमज्ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरूशंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज ने आज आराधना महोत्सव में श्रीमज्ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरूशंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी शांतानंद सरस्वती जी महाराज की जयंती-पाटोत्सव के अवसर पर नौ दिवसीय आराधना महोत्सव के समापन के अवसर पर बताया कि पीठोद्धारक श्रीमज्ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती जी महाराज के वसीयत में नामित/घोषित ज्योतिष्पीठाधीश्वर स्वामी शांतानंद जी महाराज ने पीठारोहण और अभिषेक के पश्चात विपक्षियों द्वारा लाये गये विभिन्न मुकदमों को मजबूत कानूनी संघर्ष में जीतकर श्रीमज्ज्योतिष्पीठ को सुरक्षित और संचालित किया। उन्हीं के आशीर्वाद से आज ज्योतिष्पीठ पूरे विश्व में प्रचारित और प्रसारित है। पूज्य शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज ने शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी शांतानंद जी के पाटोत्सव पर उनकी भव्य पूजा-अर्चना करके प्रसाद वितरित किया।
कथा व्यास मध्य प्रदेश से पधारे आचार्य पं0 ओम नारायण तिवारी जी ने श्रीमद्भागवतकथा के अंतिम दिन रविवार को श्रीमद्भागवतकथा में भगवान कृष्ण और उनके परम मित्र सुदामा के प्रेम-भाव पूर्ण मिलन का वर्णन करते हुये बताया कि सुदामा की एक मुट्ठी चावल ग्रहण करके भगवान कृष्ण ने मित्र सुदामा जी का गाँव-घर सोने का बना दिया।
आराधना महोत्सव में आयोजित शिखा प्रतियोगिता में 31 इंच की चोटी वाले सुन्दरम मिश्रा को-प्रथम, 28 इंच की चोटी वाले आकाश शर्मा को-द्वितीय और 27 इंच की चोटी वाले कृष्णा पाण्डेय को-तृतीय स्थान प्राप्त किया। 24 इंच की चोटी वाले प्रकाश मिश्रा ने चतुर्थ स्थान का पुरस्कार मिला।
जयपुर के प्रौढ़ भक्त श्री सीताराम जी को चोटी रखने का विशेष पुरस्कार प्रदान किया गया। आचार्य विपिनानन्ददेव द्वारा 40 इंच की चोटी रखने पर उन्हें पुनः आठवें वर्ष पूज्य शंकराचार्य ने चोटी सम्राट घोषित किया। इसके पश्चात् भव्य रूद्राभिषेक पूजन भी हुआ।
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से दण्डी संन्यासी स्वामी विनोदानंद सरस्वती जी महाराज, दण्डी स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती, दण्डी संन्यासी ब्रह्मपुरी जी, ज्योतिष्पीठ संस्कृत महाविद्यालय के पूर्व प्रधानाचार्य पं0 शिवार्चन उपाध्याय, आचार्य पं0 अभिषेक मिश्रा, आचार्य पं0 विपिनदेवानंदजी, आचार्य पं0 मनीष मिश्रा, श्री सीताराम शर्मा आदि विशेष रूप से सम्मिलित रहे।