October 30, 2024

भक्त रामप्रसाद

प्रयागराज बंगाल में एक बड़े रसिक देवी भक्त हुए हैं जिनका नाम रामप्रसाद जी है। जिन माता आदि पराशक्ति के चरणों के नख से अनंत ब्रह्मांड का सृजन होता है , जिनके दर्शन को देवता सदैव लालयत रहते हैं वह माता आदिशक्ति स्वयं अपने प्रिय पुत्र रामप्रसाद जी का पद सुनने आती थीं । रामदास जी के पिताजी आयुर्वेद के चिकित्सक थें और चाहतें थें कि रामप्रसाद जी भी ऐसे ही किसी पेशे को अपना लें पर रामप्रसाद जी ने तो अपना सर्वस्व माता काली को सौंप दिया था , रामप्रसाद जी की प्रत्येक साँसें माता काली का गुणगान करती थीं । रामप्रसादजी के लिए तो सारा जगत ही कालीमय था। जिन परमात्मा के प्रसन्नता के लिए मनुष्य सारे कार्यों को छोड़ता है उन परमात्मा को छोड़कर भला संसार के वासनामय कार्यों में रामप्रसाद जी जैसे भक्त स्वयं को क्यों शामिल करना चाहेंगे । पिताजी के देहांत के पश्च्यात रामप्रसाद जी को घर की जीविका हेतु मित्र दुर्गाचरण के यहाँ कार्य अवश्य करना पड़ा पर इनके लिए कार्य भी भजन बन गया था । भगवान के प्रेमि भक्तों का यही गुण होता है कि यह कभी भी भजन से मुक्त नही होतें हैं, इनके समस्त कार्यों में भजन संलग्न रहता है । रामप्रसाद जी जहाँ कार्य करते थें वहाँ कागजों में भी भजन लिख देते थें । जब यह बात मित्र दुर्गाचरण को पता चली तो उसने रामप्रसाद जी के लिखे हुए भजन की दो पंक्तियां पढ़ीं । रामप्रसाद जी के भजन में माता काली के प्रति जो प्रेम था उस प्रेममय पंक्तियों के कुछ अक्षर पढ़कर ही दुर्गाचरण ने पढ़ना बंद कर दिया इसलिए नही कि भजन अच्छा नही लगा अपितु इसलिए कि उस भाव को पढ़कर उसे व्यक्त कर पाने की क्षमता उसमें नही थीं । दुर्गाचरण ने भक्त रामप्रसादजी से कहा तुम आजीवन भजन लिखों मैं तुम्हे भजन लिखने की तनख्वाह दूँगा । रामप्रसाद जी के भजन को सुनने की लालसा माता काली में ऐसी थी कि विवाह के दूसरे दिन स्वयं माता काली ने भजन सुनाने को कहा और रामप्रसाद जी प्रेम में अवरुद्ध कंठों से गाने लगें काली बोलें क्या बोलें काली बोलें (रामप्रसादजी से प्रेरित) । रामप्रसाद जी कंठ तक जल में जाकर माता को रोज भजन सुनाते थें, एक बार साधारण वेश में काशी से माता अन्नपूर्णा भजन सुनने आई , रामप्रसाद जी ने कहा पूजन के बाद मैं आपको भजन सुनाता हूँ ,जब रामप्रसाद जी पूजन के बाद आये तो माता जा चुकीं थीं फिर स्वप्न देकर माता रामप्रसाद जी को वास्तविकता बताती हैं जिससे रामप्रसाद जी को बड़ा पश्चयताप होता है और यह काशी निकल जाते हैं माता को भजन सुनाने । प्रयागराज में जब रामप्रसाद जी पीपल के वृक्ष के नीचे विश्राम करते हैं तो माता स्वप्न देकर कहती हैं , काशी आकर भजन सुनाने की आवश्यकता नही है तुम यहिं से भजन सुना दो । रामप्रसाद जी का देह त्याग भी बड़ा अलौकिक था नवरात्रि में माता के पूजन के पश्च्यात जब रामप्रसाद जी मूर्ति को जल में प्रवाहित करते हैं तो मूर्ति के साथ साथ रामप्रसाद जी के प्राण भी प्रवाहित हो जाते हैं और माता अपने साथ अपने पुत्र को सदैव के लिए ले जाती हैं । प्रत्येक माता का यही स्वभाव होता है कि यह सदैव संतान को दुनिया से छिपाकर लाड़ करती हैं तो विचार कीजिये जगत जननी भला संसार के सामने कैसे संतान को लाड़ कर सकती हैं तो इसलिए उन्होंने देह रूपी संसार से रामप्रसाद जी को मुक्त कर दिया और ले गईं अपने उस लोक जहाँ माता और पुत्र के प्रेम के मध्य किसी संसारी की गति न हो ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

चर्चित खबरे