वो घर-घर नहीं होते जिनके घर बिटिया नहीं होती
वो घर-घर नहीं होते जिनके घर बिटिया नहीं होती
सांस्कृतिक केन्द्र परिसर में आयोजित कवि सम्मेलन एवं मुशायरा में कवियों ने खूब वाहवाही लूटी। कोई देश भक्ति तो कोई भाईचारा की कविता सुनाकर लोगों का मन मोह लिया। देर रात तक श्रोता कविता के रस से सराबोर होते रहे। उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र द्वारा दीपावली शिल्प मेला पर प्रतिदिन आयोजित सांस्कृतिक संध्या में रविवार को एक भारत श्रेष्ठ भारत के अंतर्गत कवि सम्मेलन एवं मुशायरा का आयोजन किया गया। इस दौरान ओज कवि अजय भालचन्द्र खेर ने अपनी रचना से इसका आगाज किया उन्होंने “आदमी को आदमी के पास आने दीजिएहो साहिल अनेकों रास्ते भी बीस हो मंजिलें भी गर जुदा हो हम सफर नाचीज हो” की प्रस्तुति देकर खूब तालियां बटोरी। कवयित्री रेनू मिश्रा ने अपनी रचना के माध्यम से देश की सीमा पर तैनात सैनिकों के लिए पेश किया भावों में बहकर मैं ,गीत लिखा करती हूं। तैनात हैं जो सीमा पर उनकी जीत लिखा करती हूं तथा भक्ति की मधुशाला में डूबा जग सारा है, बजा डमरू त्रिनेत्र का, नाचा जग सारा है…. कविता सुनाकर पूरा पंडाल शिवमय कर दिया। इसके बाद डॉ. विन्रम सिंह सेन नदी में उतरो तो तैरना आना चाहिए, शौक उड़ने का है तो उड़ना भी आना चाहिए, हो ऐतबार खुद पे तो किसी से क्या डरना, प्यार हो जाए तो फिर प्यार निभाना चाहिए की प्रस्तुति देकर खूब तालियां बटोरी। तजावर सुल्ताना ने पढा दिलों के दर्द की कोई टिकिया नहीं होती, चुभ जाए जो बात वो घटिया नहीं होती, वो घर-घर नहीं लगते जहां बिटिया नहीं होती। प्रख्यात कवि अशोक बेशरम ने अपनी रचना से आज के व्यस्त जीवन पर तीखा प्रहार किया उन्होंने पेश किया हमने माना कि मसरूफियत है बहुत, मगर मिलते रहने का कुछ सिलसिला कीजिए। इसी तरह दिनेश चन्द्र पाण्डेय, व्योमेश शुक्ला, लक्ष्मण गुप्ता ने अपनी रचनाओं का जादू बिखेरा और प्रस्तुतियों से वाहवाही लूटी। अध्यक्षता जन कवि प्रकाश और संचालन अशोक बेशरम ने किया।
आपको बता दें उत्तर मध्य संस्कृतिक केंद्र के परिसर में शिल्प मेला लगा हुआ है, जिसमें देश के कोने-कोने से आए शिल्पकार अपना हुनर दिखा रहे हैं और कई तरह के सामान बिक रहे हैं। शिल्प मेला के हर दिन शाम के वक्त सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है ताकि जो लोग खरीदारी के लिए आ रहे हैं वह शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी लुत्फ उठा सके।