धूमधाम से निकली प्रयागराज में रावण की शोभायात्रा
धूमधाम से निकली प्रयागराज में रावण की शोभायात्रा
समूची दुनिया में दशहरे पर भले ही जगह-जगह रावण के पुतले जलाए जाने की परम्परा हो, लेकिन संगम नगरी प्रयागराज में दशहरा उत्सव की शुरुआत तीनों लोकों के विजेता लंकाधिपति रावण की पूजा-अर्चना और भव्य शोभायात्रा के साथ होती है. घोडों-रथों, बैंड पार्टियों व आकर्षक लाइट्स के बीच महाराजा रावण की शोभायात्रा जब उनके कुनबे और मायावी सेना के साथ प्रयागराज की सड़कों पर निकलती है, तो उसके स्वागत में जनसैलाब उमड़ पड़ता है.
दशानन की मायावी सेना ने दिखाए अनोखे करतब
दशहरे की शुरुआत के मौके पर संगम नगरी प्रयागराज में तीनो लोकों के विजेता लंकाधिपति रावण की शाही सवारी इस साल भी परम्परागत तरीके से पूरी सज-धज और भव्यता के साथ निकाली गयी. ऋषि भारद्वाज के मंदिर से निकाली गई शाही सवारी से पहले प्राचीन शिव मंदिर में महाराजा रावण की आरती और पूजा-अर्चना कर उनके जयकारे लगाए गए.
रावण बारात के नाम से मशहूर इस अनूठी शोभायात्रा में दशानन भव्य रथ पर रखे चांदी के विशालकाय हौदे पर सवार होकर श्रद्धालुओं को दर्शन दे रहे थे तो उनकी पत्नी महारानी मंदोदरी व परिवार के दूसरे लोग घोडों व अलग-अलग रथों पर विराजमान दिखाई दिए. दशानन की सवारी के ठीक आगे उनकी मायावी सेना अनोखे करतब दिखाते हुए चल रही थी.
रावण की विद्वत्ता के कारण होती है पूजा
विद्या और ज्ञान की देवी सरस्वती के उदगम स्थल और ऋषि भारद्वाज की नगरी प्रयागराज में महाराजा रावण को उनकी विद्वता के कारण पूजा जाता है. यहां दशहरे के दिन रावण का पुतला भी नहीं जलाया जाता. दशहरा उत्सव शुरू होने पर यहां राम का नाम लेने वाले का नाक-कान काटकर शीश पिलाने का प्रतीकात्मक नारा भी लगाया जाता है. दशहरे पर रावण की पूजा करने वाले श्री कटरा रामलीला कमेटी के लोग खुद को ऋषि भारद्वाज का वंशज मानते हैं. रावण पूजा के साथ दशहरा उत्सव शुरू करने की यह परम्परा यहां सदियों पुरानी है.
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रिपोर्ट सहयोगी विनोद कुमार