होटल मे वेटर, मनरेगा मे मजदूरी, राष्ट्रीय /अंतरराष्ट्रीय एशियन रिकॉर्ड धारक – राम बाबू ने मां का सपना किया सच
होटल मे वेटर, मनरेगा मे मजदूरी, राष्ट्रीय /अंतरराष्ट्रीय एशियन रिकॉर्ड धारक – राम बाबू ने मां का सपना किया सच
सोनभद्र । कौन कहता है आसमाँ में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों” यह गरीब का लड़का रामबाबू ने साबित करके दिखा दिया। राम बाबू के माता पिता मजदूरी कर अपने चार बच्चो का पालन पोषण करते थे लेकिन बच्चो को पढ़ाने व आगे बढ़ाने का जज्बा भरा हुआ था । 5 गाँव मे 5वी की पढाई के बाद मां ने जवाहर नवोदय विद्यालय मे पढने के लिए भेज दिया और 12वीं तक स्कूल मे ही मैराथन का प्रशिक्षण लेता रहा , उसे बाद उसके संघर्ष की कहानी शुरु हो गई कठिन परीक्षा के बाद राष्ट्रिय रिकार्ड धारी आज का एशियन गेम का पदक विजेता बन गया है ।
चीन मे चल रहे एशियन गेम मे कांस्य पदक जितने वाले राम बाबू ने राष्ट्र का गौरव बढाने के साथ जिले का भी मान सम्मान फक्र से उँचा कर दिया है ।
राम बाबू लॉकडाउन के दौरान गड्ढे खोदने से लेकर राष्ट्रीय खेल 2022 में एनआर को हराने तक, राम बाबू की यात्रा कड़ी मेहनत और धैर्य से भरी है। कोविड लॉकडाउन के दौरान, जब उसका बेटा उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में मनरेगा मे मजदूरी कर गड्ढे खोद रहा था, एक माँ का सपना था कि हर कोई उसके बेटे को जाने। आखिरकार वह दिन आ ही गया जब राम बाबू ने चल रहे राष्ट्रीय खेलों में 35 किमी पैदल चाल में राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ दिया और हर कोई उनके बारे में बात कर रहा है। लेकिन रामबाबू ने हौसले को थमने नही दिया अपनी मेहनत के बल पर अंतरराष्ट्रीय एशियन खेल मे कांस्य पद जीत कर अपनी मां का सपना तो पुरा किया इसी किये साथ भारत माता का भी सपना पुरा किया ।
राम बाबू की मां बताया की रामबाबू ने दौड़ मे जीतने के बाद , “मुझे तुरंत बाद फोन किया और उन्हें बताया कि मैंने अंतरराष्ट्रीय रिकार्ड तोड़ते हुये कांस्य पदक जीता है मैने आपका सपना पुरा कर दिया मां” । वह खुश हैं। रामबाबू के पिता दैनिक काम से वापस आएंगे तो उन्हें पता चल जाएगा।”
35 किमी रेस वॉकिंग का नया अंतरराष्ट्रीय रिकॉर्ड धारक दौड़ के अंत में लगभग थक गया था, लेकिन दर्शकों के उत्साह और चिल्लाहट के समर्थन से, उसने स्वर्ण जीतने के लिए प्रयास किया और कड़ी स्पर्धा मे कांस्य जितने मे सफ़ल रहा।
यूपी के सोनभद्र जिले के बहुआरा गांव से आने वाले राम ने मैराथन धावक के रूप में शुरुआत की लेकिन पैसे की कमी के कारण उन्हें यह छोड़ना पड़ा । राम बाबू 2014 में मैराथन दौड़कर शुरुआत की। उस समय उनको एहसास हुआ कि मैराथन में कम प्रतियोगिताएं होती हैं और इसके लिए आवश्यक आहार और प्रशिक्षण का खर्च वहन करना बहुत ही लिए कठिन था।” राम बाबू की मां ने याद करते हुए कहा, “मेरे पास पैसा नहीं था। जिससे रामबाबू के प्रशिक्षण अच्छे जगह नही करा पा रहे थे । रामबाबू ने 12वीं नवोदय विद्यालय से पास कर अपने जुनून के लिए बनारस के एक होटल में वेटर के रूप में काम करने वाले राम को अपनी ट्रेनिंग के लिए प्रतिदिन दस घंटे से अधिक काम करना पड़ता था। एथलीट मे आगे बढने के लिए बड़ी मुश्किल से मां बाप घर से मेहनत मजदूरी कर पैसे भेजा करते थे । उस समय दो वक्त का खाना जुटाना भी मुश्किल था। रामबाबू ने होटलों में वेटर के रूप में काम किया था, लेकिन वहां काम का बोझ इतना था कि मैं अपनी ट्रेनिंग से उबर नहीं पा रहा था।” बनारस के उस होटल से जुट का बोरा सिलने से राष्ट्रीय खेलों के मंच तक का सफर कोई परीकथा जैसा नहीं है। “रामबाबू ने कई नौकरियां बदलीं। रामबाबू जुट की बोरी भी सिलता था। लेकिन काम का बोझ इतना था कि मैं ठीक नहीं हो सका । कोविड के दौरान रामबाबू ने मनरेगा मे दिहाड़ी मजदूर के रूप में भी काम किया।” जिसके लिए उसे 200 रुपये मिलते थे । रामबाबू “सौभाग्य से नॉर्दर्न कोल फील्ड लिमिटेड के एथलेटिक्स कैंप के लिए चुना गया था। वहां के कोच ने रामबाबू से मैराधन दौड़ को बदलने और रेस वॉकिंग का करने का सुझाव दिया। रेस वॉकिंग मेरे लिए कठिन थी।
राष्ट्रीय ओपन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण जीतने के बाद, राम विश्व कप में गए। भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए। “मैंने विश्व कप में खराब प्रदर्शन किया। मैंने ट्रायल्स में अच्छा प्रदर्शन किया था लेकिन शीर्ष स्तर पर यह काम नहीं आया और मुझे वहां हैमस्ट्रिंग की चोट लग गई।” ”हैमस्ट्रिंग की चोट मेरे लिए कठिन थी। मैंने पहले 35 किमी पैदल चाल में राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ दिया,’और एशियन गेम मे कांस्य पदक जीता । एक वेटर के रूप में शुरुआत करने और अब अंतरराष्ट्रीय रिकॉर्ड धारक के रूप में खड़े होने तक, राम बाबू की यात्रा धैर्य और दृढ़ संकल्प की कहानी है।
चीन में एशियाई खेलों की राह कठिन थी लेकिन 35 किलोमीटर मे कांस्य पदक जीत कर भारत के साथ अपने गृह जनपद सोनभद्र का भी नाम रोशन कर दिया।
राम बाबू की मां ने बताया की राम बाबू के जीत से मै बहुत खुश हुँ उसने मेरा सपना पुरा कर दिया , उसने चीन मे पदक जीतने के बाद मुझे फोन किया था कहा की मां मैने आपका सपना पुरा कर दिया । राम बाबू की मां बताती है की मेरे साथ अन्याय हो रहा है मै 35 साल से जिस जमीन पर रह रही हुँ उसके लिए मैने 15 हजार मे जमीन लाल बाड़र से खरीदी थी लेकिन अब उस उस जमीन से हमे हटा रहा है। राम बाबू ने जब राष्ट्रिय रिकार्ड तोड़ा था तब जिलाधिकारी हमारे घर आये थे एक हैंडपम्प दिया और 10 बिस्वा जमीन दिया जो जमीन हमे दी गई है वह नदी के किनारे है जहाँ घर नही बनाया जा सकता है 1 बिस्वा रहने के लिए दिया गया है उसके ऊपर से हाईटेंशन टावर लाइन गई है । मै जिस जगह पर रह रही हुँ उसका कोई निवारण नही कर रहा है । मै मोदी जी और योगी जी से जहाँ रहती हुँ उस जगह को हमे देने की मांग किया।
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रिपोर्ट मनोज सिंह राणा