अमृत भारत एक्सप्रेस: भारत के जन-जन की ट्रेन, कनेक्टिविटी के नए युग की शुरुआत- ओम प्रकाश
कनेक्टिविटी के नए युग की शुरुआत- ओम प्रकाश
भारतीय रेल को देश की जीवनरेखा कहा जाता है। यह हर दिन 2.3 करोड़ से ज़्यादा यात्रियों को सफ़र कराती है। यह केवल एक परिवहन साधन ही नहीं बल्कि देश की सामाजिक और आर्थिक ज़रूरतों को पूरा करने वाली शक्ति है। अमृत भारत एक्सप्रेस इस बड़े तंत्र में एक गेम-चेंजर बनकर उभरी है। कम-लागत, आधुनिक और समावेशी पहल जो भारतीयों की यात्रा करने की शैली को बदल रही है। यद्यपि यह पूरे देश की आशाओं को पूरा करती है, इसके परिवर्तनकारी प्रभाव विशेष रूप से बिहार में उल्लेखनीय हैं। एक ऐसा प्रदेश जहाँ निवासियों का भाग्य हमेशा से रेल कनेक्शन पर बहुत अधिक निर्भर रहा है।
यह ट्रेन वाकई में जन-जन की रेल है। जहाँ प्रीमियम ट्रेनों से केवल चुनिंदा लोगों को सुविधा होती हैं, वहीं अमृत भारत आम यात्रियों के लिए है। ये नॉन-एसी सुपरफास्ट ट्रेनें हैं जिनका किराया पारंपरिक मेल-एक्सप्रेस के करीब है, लेकिन सुविधाएँ आधुनिक हैं। उदाहरण के लिए, पटना-दिल्ली अमृत भारत एक्सप्रेस की स्लीपर टिकट लगभग 560 रुपये में मिलती है। सफ़र झटकों से मुक्त है, सीटें आरामदायक हैं, बायो-वैक्यूम टॉयलेट, एलईडी लाइटिंग और मोबाइल चार्जिंग प्वाइंट जैसी सुविधाएँ मौजूद हैं। सुरक्षा के लिए फायर डिटेक्शन सिस्टम, सेमी-ऑटोमैटिक कपलर और ऑनबोर्ड मॉनिटरिंग जैसी तकनीकें भी लगी हैं।
अमृत भारत एक्सप्रेस का नेटवर्क देशभर में तेज़ी से बढ़ रहा है। दर्जन भर से अधिक मार्गों पर ट्रेनें चल रही हैं और अगले कुछ वर्षों में 200 नई अमृत भारत ट्रेनों की योजना है। सभी ट्रेनें मेक इन इंडिया के तहत देश में ही बन रही हैं। एक-एक रेक की लागत लगभग 65 करोड़ रुपये है, जिससे निर्माण इकाइयों, आपूर्ति श्रृंखला और रखरखाव केंद्रों में रोज़गार भी बढ़ रहा है। यह न सिर्फ़ यात्री सेवा में, बल्कि औद्योगिक दृष्टि से भी आत्मनिर्भर भारत की ओर बड़ा कदम है।
देश के अन्य राज्यों की तुलना में बिहार में इन ट्रेनों का असर सबसे ज़्यादा दिखता है। पहले शुरू की गई 14 सेवाओं में से 10 सीधे तौर पर बिहार से जुड़ी हैं। दरभंगा, पटना, सहरसा, मोतिहारी, सीतामढ़ी और गया से अब दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, अमृतसर और बेंगलुरु तक सीधी कनेक्टिविटी है। 3,129 किलोमीटर लंबी जोगबनी–इरोड अमृत भारत एक्सप्रेस बिहार के उत्तर-पूर्वी छोर को दक्षिण भारत (तमिलनाडु) से जोड़ती है। छात्रों, नौकरीपेशा लोगों और परिवारों के लिए इसका मतलब है कम यात्रा समय, आसान सफ़र और महानगरों तक सीधी पहुँच।
इसका सीधा आर्थिक असर भी हो रहा है। किसान और छोटे व्यापारी अब इन ट्रेनों के पार्सल वैन के ज़रिए जल्दी और सस्ते में अपना सामान बड़े बाज़ारों तक पहुँचा पा रहे हैं। स्टेशनों के आसपास रिक्शा चालकों, चाय विक्रेताओं, होटल व्यवसायियों और हस्तशिल्पियों को भी रोज़गार के नए अवसर मिल रहे हैं। इसके साथ ही सरकार की अमृत भारत स्टेशन योजना भी इन लाभों को बढ़ा रही है। जिसके अंतर्गत 1300 से अधिक स्टेशनों (केवल बिहार में 98) का आधुनिकीकरण किया जा रहा है। जहाँ स्थानीय कलाकार जैसे मधुबनी पेंटिंग बनाने वाले या मिठाई बेचने वाले सीधे यात्रियों तक अपनी चीज़ें पहुँचा सकते हैं।
पर्यटन को भी बड़ा बढ़ावा मिला है। बिहार के बोधगया, नालंदा और पटना साहिब जैसे धरोहर स्थल पहले पहुँच की कमी से जूझते थे। अब गया, सीतामढ़ी और पटना तक सस्ती और सीधी ट्रेनों की वजह से तीर्थयात्रियों और अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के लिए आना आसान हो गया है। दूसरी ओर, बिहारवासियों के लिए भी अमृतसर का स्वर्ण मंदिर या हरिद्वार जैसे पर्यटन स्थलों तक जाना सुगम हो गया है। इससे सांस्कृतिक आदान-प्रदान और अंतरराज्यीय पर्यटन दोनों को बढ़ावा मिलेगा।
अंततः अमृत भारत केवल पटरियों पर दौड़ती हुई रेलगाड़ी नहीं है, बल्कि समावेशी विकास का प्रतीक भी है। यह लाखों लोगों की यात्रा को आरामदायक और किफ़ायती बनाते हुए उद्योग, पर्यटन और रोज़गार को आगे बढ़ा रही है। यह भविष्य के लिए तैयार भारतीय रेल की ओर एक कदम है। यह एक नया अध्याय है जहाँ कनेक्टिविटी आकांक्षाओं, अवसरों और गर्व को आगे बढ़ाने वाली शक्ति बनेगी, विशेषकर बिहार के लिए।